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________________ बंद होना होता है उससे पवन और जलका उछलना और नीचे बैठना होता है इसके कारण मुखमें atiपर जलकी चौडाई दश हजार योजन प्रमाण है वहां पर पचास योजन ऊंची जलकी वढवारी होती है। उसकी दोनो ओर समुद्रकी रत्नवेदिकापर्यंत दो कोश ऊंचा जल बढता है तथा जिससमय पातालका उन्मीलन वेग शांत होता है उस समय जल घट जाता है। चारो पाताल विवरोंमें आपस में प्रत्येकका अंतर दो लाख सचाईत हजार एकैसौ सत्तर योजन और कुछ अधिक तीन कोश प्रमाण है । विदिक्षु क्षुद्रपातालानि दशयोजन सहस्रावगाहानि ॥ ५ ॥ उसी लवण समुद्रके मध्यभागमें चार क्षुद्र पाताल विवर हैं जो कि प्रत्येक दश हजार योजन गहरा मध्यभागमें दश दश हजार योजन ही चौडा एवं मुख और मूल भाग में एक एक हजार योजन चौडा है । क्षुद्र पाताल विरोंमें भी प्रत्येकके तीन तीन भाग हैं । उनमें हर एक त्रिभाग तीन हजार तीनसो तेतीस योजन और कुछ अधिक एक योजनका तीसरा भाग प्रमाण है । तीनों त्रिभागों में नीचे के त्रिभागमें पवन है | मध्यके त्रिभाग में पवन और जल है एवं ऊपर के त्रिभागमें एकमात्र जल है । तदंतरेषु क्षुद्रपातालानां योजनसहस्रावगाहानां सहस्रं ॥ ६ ॥ उपर्युक्त दिशा और विदिशाओं में रहनेवाले पातालोंके आठो अंतरोंमें हजारों क्षुद्र पाताल हैं जो कि एक हजार योजन गहरे, एक हजार योजन ही मध्यभाग में चौडे एवं मुख और मूलभाग में पांचसौ योजन चौडे हैं। इनमें भी हर एक पातालके तीन तीन भाग हैं और उनका वर्णन पहिलेके त्रिभागों के समान है । ऊपर दिशाविदिशासंबंधी आठ अंतर कर आये हैं उनमें एक एक अंतर में मुक्ताओंकी १ दूसरी प्रतिमें- 'सातसौ योजन यह अर्थ लिखा है । 'हरिवंशपुराणमें एकसौ सत्तर योजन ही अर्थ माना है । 1 अध्यार्थ ३ १२६:
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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