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यद्यपि भरतक्षेत्रका विस्तार ऊपर कह दिया गया तथापि भरतक्षेत्रकी चौडाईके प्रमाण यदि जंबूद्वीपके टुकडे किए जायगे तो वे एकसौ नब्बे बैठ सकते हैं अधिक नहीं यह दूसरे प्रकारसे भरत.॥ क्षेत्रकी चौडाई प्रतिपादन करनेकेलिए पुनः 'भरतस्य विष्कम' इत्यादि सूत्रका उल्लेख किया गया है।
उत्तराभिसंबंधार्थ वा ॥२॥ अथवा आगेके सूत्र 'द्वितिकीखंडे' 'पुष्करार्थे च' ये हैं इनके साथ संबंधकी योजनाकेलिए PI 'भरतस्य विष्कभः' इत्यादि सूत्रका उदय हुआ है अर्थात जंबूद्वीपमें जो भरतक्षेत्र आदिका स्वरूा है DI| उससे धातकीखंडके भरतादिका दूना है । पुष्कराधके भरत आदिका धातकीखंडके समान है यह संबंध SI/ जोडनेकेलिए भरतक्षेत्रको जंबूदीपका एकसौ नब्बेत भाग कहा है। इस जंबुद्धीपके चारोओर वेदिका हा है उसके बाद लवण समुद्र है । अब उस लवणसमुद्र के स्वरूपका वर्णन किया जाता है
___तलमूलयोर्दशयोजनसहसविस्तारो लवणोदः ॥३॥ ___ भूमिके समतलभागपर लवणसमुद्रकी चौडाई दो लाख योजनकी है. अर्थात् जंबूदोंपकी चौडाई ई एक लाख योजनकी है उससे आगे आगे के समुद्र और द्वीपोंमें दूनी दूनी चौडाई है इस नियम के अनुः
॥ १-एक मागमें भरतक्षेत्र, दो भागोंमें हिमवान् पर्वत, चार भागों में हैमवतक्षेत्र, पाठ भागोंमें महाहिमवान पर्वत, सोमब IPL भागोंमें हरिक्षेत्र, पत्तीस भागों में निषध पर्वत, और चौसठ भागोंमें विदेहक्षेत्रका विस्तार है उसपकार जम्मूदोरके १२७ भाग एकस BI सचाईस भाग तो दक्षिण संबन्धी हैं और नील पर्वत बत्तीस भागोंमें, रम्पक सोलह भागों में, मी आठ भागों में, हरगापवत चार टू भागोंमें, शिखरी दो भागोंमें तथा ऐरावतक्षेत्र एक मागमें विभक्त है। ऐसे उचर संबन्धी मांग हैं। दोनों में मिलाने
भाग जम्बुद्वीपके होते.
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