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________________ अपवार भाषा ६) वर्ष क्षेत्रोंमें सदा सुषमाकालकी व्यवस्था रहती है। इन पांचो हरिवर्ष क्षेत्रोंमें रहनेवाले मनुष्योंकी आयु दो पल्यकी होती है । चार हजार घनुष ऊंचे, षष्ठभुक्ताहार अर्थात् दो दिनका अंतर देकर आहार करने || वाले और शंख सरीखे वर्णवाले शक्रवर्ण होते हैं। पांचों देवकुरुओंमें सदा सुषमा सषमाकाल निश्चल रूपसे विद्यमान रहता है । इन देवकुरुओंमें रहनेवाले मनुष्योंकी आयु तीन पत्यकी होती है । छह हजार धनुष ऊंचे, अष्टभक्ताहार अर्थात् तीन दिनोंका अन्तर देकर आहार करनेवाले एवं सोने सरीखे वर्णवाले होते हैं ॥२९॥ ____ यह दक्षिणकै क्षेत्रोंका स्वरूप वर्णन कर दिया गया अब उचरके क्षेत्रों के विषय सूत्रकार सूत्र कहते हैं तथोत्तराः॥३०॥ जिसप्रकार.दक्षिणके क्षेत्रोंकी रचना है उसीप्रकार उचरके क्षेत्रोंकी भी रचना समझ लेना चाहिये। न सार यह है कि हैरण्यवतक्षेत्रकी रचना हैमवतके तुल्य है । रम्यकक्षेत्रकीरचना हरिक्षेत्र के समान है और है उचरकुरुकी रचना देवकुरुके समान है (तीनोंभोगभूमियोंमें मनुष्योंकेमल मूत्र पसेव नहीं होता है रोग| रहित शरीर होता है, मरण समय वेदना नहीं होती है, मरण समय पुरुषको जम्भाई और स्त्रीको छींक |आती है अन्य कुछ वेदना मरणकालमें नहीं होती है। वाल वृद्धपनेका भी क्लेश नहीं होता है । कलह । | आदिका दुःख नहीं होता है । मरण पश्चात् उनका शरीर कपूर के समान उड जाता है। वहां व्रतसंयम का अभाव है जिनके सम्यक्त्व होता है वे सौधर्म ईशान खाँमें जाते हैं जिनके मिथ्यात्व होता है वे | भवनत्रिकमें जाते हैं । वहां व्यभिचार कर्म नहीं है,. षट् कर्मजनित आजीविका नहीं है, कल्पवृक्षोंसे | AASREACREAAAAAAES malnimalsessindidisesents BREASEARSAEGABASEA ९२१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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