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४ा ज्ञापित होता है कि विशेष बात प्रगट करनेकेलिए पूर्वनिपातमें व्यतिक्रम कर दिया जाता है। इसलिए आषाव्याकरण शास्त्र अनुसार ही वर्ष शब्दका पूर्वनिपात नहीं किया गया है।
विदेहान्तवचनं मर्यादाथ ॥२॥ सूत्रमें जो विदेहांत शब्द है वह मर्यादा सूचित करता है अर्थात् विदेहक्षेत्र पर्यंत ही क्षेत्र और |BI पर्वत दने दने विस्तारवाले हैं उससे आगेके क्षेत्र और पर्वतोंका दूना दूना विस्तार नहीं है। अन्यथा-1 || यदि मर्यादा न की जाती तो नील आदिका भी दूना दूना विस्तार मानना पडता जो कि अनिष्ट है। 18
| विदेहक्षेत्र जिन क्षेत्र और पर्वतोंके अन्तमें हो वे क्षेत्र और पर्वत विदेहांत कहे जाते हैं । खुलासा इस पडू 15 प्रकार है
हिमवान पर्वतकी चौडाई एक हजार बावन योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में बारह भाग || प्रमाण है । हेमवत क्षेत्रकी चौडाई दो हजार एकसौ पांच योजन और एक योजनके उनीस भागों में । MMI पांच भाग प्रमाण है । महाहिमवान पर्वतकी चौडाई चार हजार दोसौ दश योजन और एक योजनके
उन्नीस भागोंमें दश भाग प्रमाण है । हरिवर्ष क्षेत्रकी चौडाई आठ इजार चारसौ इक्कीस योजन और || एक योजनके उन्नीस भागों में एक भाग प्रमाण है । निषध पर्वतकी चौडाई सोलह हजार आठसौ व्या-18
|लीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें दो भाग प्रमाण है । तथा विदेहक्षेत्रको चौडाई तेतीस || हजार छहसौ चौरासी योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें चार भाग प्रमाण है ॥२५॥ JA . इसप्रकार भरतक्षेत्रको आदि लेकर विदेहक्षेत्र पर्यंत तकके पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार कह दिया।
गया अब विदेहक्षेत्रसे आगेके जो पर्वत और क्षेत्र हैं उनका विस्तार सुत्रकार वर्णन करते हैं
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