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________________ मध्याय ACANUARRELEBRAPURॐ ग्रहण किया गया है। अर्थात् यदि सूत्रमें केवल नदी शब्दका ही ग्रहण किया जायगा तो ऊपरसे 'द्विगुण द्विगुण' की अनुवृत्ति आनेसे गंगा चौदह हजार नदियोंसे परिवारित है । सिंधू उससे दूनी नदियोंसे परि. ४. वारित है। सिंधूकी अपेक्षा दूनी नदियोंसे परिवारित रोहित नदी है इत्यादि अनिष्ट अर्थ होता। यदि यहांपर यह कहा जाय किर गंगासिंध्वादि ग्रहणका द्विगुणा द्विगुणाके साथ संबंध होना वस इतनामात्र ही प्रयोजन है कि शब्दोंकी अधिकतासे कुछ अर्थकी अधिकता है ? उसका उचर यह है कि यही प्रयोजन है क्योंकि है। गंगा शब्दके ग्रहण करने पर तो गंगा चौदह हजार नदियोंसे परिवारित है यह अर्थ है । यदि सिंधू । शब्दका ग्रहण नहीं किया जायगा तो गंगाकी परिवार नदियोंसे दूनी परिवार नदियोंसे वेष्टित सिंधू नदी है यह आनष्ट अर्थ होता उसकी निवृचिकेलिये सिंधू शब्दका ग्रहण किया गया । यदि 'गंगासिंध्वादिका सूत्रमें उल्लेख नहीं किया जाता तो यह अभीष्ट अर्थ नहीं होता। फलमुख गौरव दोषी नहीं समझा जाता, यदि जिन शब्दोंके आधिक्यसे कुछ अधिक फल निकलता हो तो वह शब्दोंका आधिक्य ५ दोषी नहीं माना जाता। यहां पर यदि गंगासिंधू इन दोनों पदोंका ग्रहण नहीं किया जाता तो गंगासे दूने परिवारवाली सिंधू ठहर जाती, उससे दूने परिवारवाली उससे आगेकी नदी ठहरती, परंतु यह अर्थ है। है शास्रविरुद्ध है इसलिये गंगासिंधू पद देनेसे दोनोंका समान परिवार सिद्ध होता है तथा आगे भी क दोनोंका समानरूपसे द्विगुणित परिवार सिद्ध होता है। गंगा और सिंधू दोनों नदियों में प्रत्येक नदी चौदह चौदह हजार नदियोंसे परिवारित है। आगे सीतोदा नदी पर्यंतकी नदियोंकी परिवार नदियां दूनी दूनी हैं। सीतोदाके आगेकी नदियोंकी परिवार PARISHADANGABASENSATORSAROTEST+DARSHASTROTA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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