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________________ अध्याय * समान समझ लेना चाहिये । विशेष इतना है कि इस हरित् महानदीकी धाराका गिरना कुछ अधिक वापार चारसौ योजनका है हरित महानदीके कुंडके प्रासादमें हरित नामकी देवी निवास करती हैं। उदीच्यतोरणद्वारविनिर्गता सीतोदा॥७॥ उस तिगिंछ सरोवरके उचरकी ओरके तोरण दारसे सीतोदा महानदीका जन्म हुआ है। यह भी 12 पर्वतके तलमागमें उचरकी ओर बहती है । इसकी धाराका संपात कुछ अधिक चारसौ योजनका है। चार योजन मोटी और पचास योजन चौडी है । तथा जिसके मध्यभागमें श्रीदेवी के प्रासादके समान 18 लंबे चौडे प्रासादसे शोभायमान एवं दो कोश दश योजन ऊंचे चौसठ योजन प्रमाणे लंबे चौडे द्वीपसे 5 हूँ अलंकृत है और जो चारसौ अस्सी योजन प्रमाण लंबा चौडा, अस्सी योजन प्रमाण गहरा एवं वज्र-छ #. मयी तलका धारक है ऐसे कुण्डमें जाकर पडती है । पश्चात् इस कुण्डके उचरकी ओरके तोरण बारसे 12 निकलकर देवकुरुमें अनेक प्रकारके कूटोंके मध्यभागमें होती हुई उचरकी ओर गमनकर आधे योजन ? दरसे मेरु पर्वतकी प्रदक्षिणा कर और विद्युत्प्रभ नामक गजदंतको विदीर्ण कर पश्चिम विदेहके मध्यभागमें गमन करती है । जहाँपर इस सीतोदा नदीका उदय हुआ है वहांपर यह एक योजन गहरी और पचास योजन चौडी है। मुख भागमें दश योजन गइरी ओर पांचसौ योजन चौडी है एवं पथिम समुद्र में जाकर प्रविष्ट हुई है। सीतोदा नदीके कुंडके प्रासादमें सीतोदा नामकी देवीका निवासस्थान है। - केसरिहदप्रभवाऽपाच्यद्वारनिर्गता सीता ॥८॥ है. नील पर्वतके ऊपर केसरी सरोवरके दक्षिण द्वारसे सीता नदीका जन्म हुआ है इसका कुल वर्णन 2 सीतोदा नदीके समान समझ लेना चाहिये । इतना विशेष है कि-सीता महानदीके कुण्डके प्रासादमें SASTERSTORERNETREARRESTERSNEHOROTIBRest BिABABPORORSBANDRORISROPEREN ९०७
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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