SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 921
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ o RECEREARREARREA .... 'तदादिगुणद्विगुणाः' यहाँपर जो तत् शब्द है. उसका द्विगुण शब्दके साथ समास है कि द्विगुण-80 अचार | द्विगुण शब्दके साथ ? यदि यह कहा जायगा कि द्विगुण शब्दके साथ समास है तब तद्विगुण यह जो 5| समुदाय है उसका सूत्रमें दो बार उल्लेख करना पड़ेगा अर्थात् तद्विगुणतद्विगुणाः ऐसा कहना है गटि कहा जायगा कि द्विगणद्विगुण शब्दके साथ समास है तब द्विगुणदिगुणरूप समुदाय । |असुबंत है अर्थात् द्विगुणश्च द्विगुणश्च द्विगुणद्विगुणो इस रूपसे न्यायप्राप्त द्विगुणद्विगुण शब्द सुबंत होता तब तो तयोदिगुणद्विगुणौ तद्विगुणद्विगुणो ऐसा समास हो जाता परंतु यहां तो द्विगुणदिगुणाः । | यह बहुवचनांत द्विगुणद्विगुण शब्दका प्रयोग है जो कि व्याकरणकी परिपाटीके विरुद्ध असुवंत सरीखा | है इसलिए उसके साथ तत् शब्दका समास नहीं हो सकता। यदि कहा जायगा कि यह वीप्सामें द्वित्व है 8 समास नहीं तब 'तयोदिगुणद्विगुणा' ऐसे वाक्यका उल्लेख ही उपयुक्त है इसरीतिसे 'तद्विगुणद्विगुणा यह प्रयोग साधु नहीं जान पडता ? सो ठीक नहीं । यहाँपर अपादान पंचमीके अर्थमें तत् शब्दका निपात है इसलिए तद्विगुणद्विगुणाः' यहांपर समास नहीं किंतु 'ततो द्विगुणा द्विगुणाः' यह वाक्यार्थ है इसलिए कोई दोष नहीं ॥१॥ पद्म आदि कमलोंमें रहनेवाली देवियां और उनके परिवारका सूत्रकार प्रतिपादन करते हैंतन्निवासिन्यो देव्यः श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमास्थतयः . ससामानिकपारिषत्काः ॥१६॥ | .. उक्त छहो कमलों में रहनेवाली श्री, हो, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नामकी छह देवियां हैं जो कि एक पल्यकी आयुकी धारक हैं और सामानिक एवं पारिषक जातिके देवोंके साथ निवास करती हैं। बनाय SAECRECOGER
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy