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________________ २०१० SENT ८९५ वा कमल दूने दूने हैं यह इष्ट अर्थ है किंतु तिर्गिछसे दूना कैंसरी और उससे दूंना महापुंडरीक और महापुंडरीकसे दूना पुंडरीक है यह आनेष्ट अर्थ यहांपर नहीं । वह खुलासारूपसे इसप्रकार है महाहिमवान पर्वतके उपर ठीक मध्यभाग में महापद्म नामका सरोवर है और वह दो हजार योजन लंबा, एक हजार योजन चौडा और वीस योजन गहरा है। उस महापद्म सरोवर के मध्यभागमें महापद्म नामका कमल है जो कि जलके तलभागसे दो कोश पर्यंत ऊंचे और एक योजनके मोटे अनेक पचोंका धारक है। दो कोश लंबे पत्र और एक योजन लंबी कर्णिकाका धारक होनेसे दो योजन लंबा चौडा है । इस महापद्मके जो परिवार कमल हैं उनकी संख्या पद्म कमलके ही समान एक लाख चालीस हजार एकसौ पंद्रह है। निषेध पर्वतके ऊपर ठीक मध्यभागमें तिगिंछ नामका सरोवर है जोकि चार हजार योजनका लंबा, दो हजार योजनका चौडा और चालीस योजनका गहरा है । इस तिगिंछ सरोवर के मध्यभागमें |तिगिंछ नामका कमल है जो कि जलके तलभागसे दो कोश पर्यंत ऊंचा उठा हुआ है दो योजन मोटे | अनेक पत्रोंका धारक है एंव एक योजन लंबे पत्र और दो योजन लंबी कर्णिकाका धारक होनेसे चार योजनका लंबा चौडा है । इस तिगिंछ कमलके परिवार कमलोंकी संख्या पूर्वोक्त पद्म कमलके परिवार | कमलोंकी वरावर है। पर्वत ऊपर ठीक मध्य भाग में केसरी नामका सरोवर है । वह तिगिंछ सरोवर के समान है और उसके परिवार कमल भी उसीके समान हैं अर्थात् केसरी सरोवर चार हजार योजन लंबा, दो हजार योजन चौडा और चालीस योजन गहरा है। अध्याय ३
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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