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योजन'चोडे, पर्वतके समान लंबे एवं बहुतसे तोरणद्वारोंसे विभाजित पद्मवरवेदिकासे वेष्टित दो दो वनखंडोंसे शोभायमान हैं ॥१२॥ ___ और भी उन्हीं कुलाचलोंका विशेष बतलानेकेलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं- '
__... मणिविचित्रपार्धा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः॥ १३ ॥" .. ''इन छहो कुलाचलोंके पसवाडे-दोनों ओरके पार्श्वभाग नाना प्रकारके रंग विरंग प्रभावाले र मणियोंसे चित्र विचित्र हैं तथा ये ऊपर नीचे एवं मध्यभागमे तुल्य विस्तारवाले अर्थात् एकसे चौडै १ 'दीवालके समान हैं। . : नाना प्रकारके वर्ण और प्रभाव आदि गुणोंकी धारक नाना प्रकारकी मेणियोंसे उपर्युक्त कुलाचलोके पसवाडे चित्र विचित्र हैं। '
अनिष्टसंस्थाननिवृत्त्यर्थमुपर्यादिवंचनं ॥१॥ _ 'उपर्युक्त कुलाचलोंकी रचना कोई अन्य अन्य प्रकारसे न मान बैठे उस अनिष्टरचनाकी निवृत्तिके लिए सूत्रमें 'उपरि' आदि पदोंका उल्लेख किया गया है। सूत्रमें जो 'च' शब्दका उल्लेख है वह मध्यरूप है है अर्थक समुच्चयकेलिए है। सार अर्थ यह है कि जो विस्तार इन पर्वतोंका मूलभागमें है वही विस्तार है 'ऊपर और मध्यभागमें है॥१३॥ ' ' अब छह कुलाचलोके मध्यभागमें रहनेवाले छई सरोवरोंका सूत्रकार उल्लेख करते हैं- -श्लोकवार्तिष कारने 'मणिविचित्रपााः ' इतना एक सूत्र माना है और उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः' इतना दूसरा सूत्र माना है.'
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SOURISGAR