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________________ अध्याय अन्य पक्षियोंमें भी है तथापि जिसप्रकार रूढिवलसे शिखंडी शब्दका अर्थ मयूर ही लिया जाता है है उसीप्रकार यद्यपि अन्य पर्वतोंके भी शिखरोंकी विद्यमानता है तथापि रूढिवलसे शिखरी शब्द पर्वत । विशेषका ही वाचक है । प्रश्न-शिखरी पर्वतकी रचना कहांपर है ? उत्तर हैरण्यवतैरावतसेतुबंधः स गिरिः॥१२॥ हेरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रोंका सेतुबंध (पुलकी रचना) के समान शिखरी पर्वत वीचमें पडा , हुआ है। अर्थात् जिसप्रकार पुल नदीके इस किनारेसे उस किनारेका संबंध जोडता है उसीप्रकार यह पर्वत भी हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रोंका संबंध जोडता है अर्थात् दोनोंके वीचमें पड़ा हुआ है अथवा पुल जैसे दोनों किनारोंका विभाग करता है उसीप्रकार यह पर्वत दोनों क्षेत्रोंका विभाग करता है। इसका कुल प्रमाण क्षुद्र हिमवान् पर्वतके प्रमाणके समान समझ लेना चाहिये । अर्थात्___यह शिखरी पर्वत पच्चीस योजन प्रमाण नीचे जमीनमें गहरा है। सौ योजन ऊंचा है। एक हजार बावन योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें बारह भाग प्रमाण चौडा है। इस शिखरी पर्वतकी उत्तरकी ओर की प्रत्यंचा चौवीस हजार नौसौ वचीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें एक भाग कुछ कम है । प्रत्यंचाका धनुष पृष्ठ पच्चीस हजार दोसौ तीस योजनके उन्नीस भागोंमें चार भागे कुछ अधिक है । तथा इसकी पूर्व पश्चिम ओरकी दोनों भुजाओंमें प्रत्येक भुजा पांच हजार तीनसौ पचास योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें पंद्रह भाग कुछ अधिक अर्धभाग प्रमाण है। __इस शिखरी पर्वतके ऊपर सिद्धायतनकूट १ शिखरीकूट २ हैरण्यवतकूट ३ रसदेफूिट ४ रक्तावती (रत्या) कूट ५रक्ताकूट ६ श्लक्ष्णकूलाकूट ७ लक्ष्मीकूट गंधदेवीकूट ९ ऐरावतकूट १० और FADARSASARAM
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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