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________________ माता Summaryागादराजवाभधान ॥२०॥ , रता और रक्तोपानीके ठीक मध्यभागमें अयोध्या नामकी नगरी है। उसमें किसी समय ऐरावताराम नामका राजा उत्पन हुभा था। उस राजाने ऐरावत क्षेत्रका परिपालन कियाथा इसलिये उसीके संबैधसे । क्षेत्रका ऐरावत नाम पसिब है। प्रश्न-ऐरावतक्षेत्र कशापर है। उत्तर शिरिसराद्यांतरे दुपणासः ॥२॥ शिखरी पर्षत और पूर्व पश्चिम और उत्तर तीनों सगुलोंके बीनमें ऐरावत क्षेत्र है। तन्मध्ये पूर्णाजियाः ॥ २२॥ उस ऐरावत क्षेत्रके मगमागमें विजया नामका रजतगिरि है। उपर जो विजया पर्वतका वर्णन किंगा गगासाकी वर्णन इसका भी समश लेना नाहिये ॥१०॥ जिन रुलानलोके बारा भरत आदि क्षेत्रोंका विभाग होता है वे कौन ई और किसरूपसे व्यव-15 | खित हैं । रासकार इस बात का उल्लेख करते हैं| तबिभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवानिषधनीलरुक्मिशिखिरिणो वर्षधरपर्वताः ॥ ११॥ . तासात नोंका विभाग करनेवाले, पूर्णसे पाश्चिम तालबे. हिगवान महादिमवान र निषष नील रुगनी और शिरारी ये लड नाम पर्वत हैं। इन पौवारा वर्ष कहिये क्षेत्रोका विभाग किया जाता तथा उन नोंको ये पर्नत भिन २ रूपसे धारण करते हैं इसलिगेशन नार अर्थात् KASGANOPARASCERTISEMENTSHARE -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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