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अध्याय
SAHEGATKAR
पूर्वदिशामें पद्मा १ पद्मगुल्मा २ कुमुदा ३ और कुमुदप्रभा ४ ये चार वापियां हैं। ये समस्त वापियां ||६||
पचास योजन लंबी, पच्चीस योजन बोडी, दश योजन गहरी चौकोन और चारों ओर विशाल हैं। इन ||६|| है। वापियों में हर एक वापीके अंदर एक एक प्रासाद है जो कि बासठ योजन दो कोश ऊंचा, इकतीस ||
योजन एक कोश चौडा और इकतीस योजन एक कोश प्रमाण ही प्रवेशमार्गका धारक है। यहांपर दक्षिणदिशाकी विदिशाओंमें जो प्रासाद कह आए हैं उनमें तो सौधर्मस्वर्गके इंद्रके भीम विहार हैं और उचरदिशाकी विदिशाओंमें ईशानस्वर्गके इंद्रके भौम विहार हैं। . मेरुपर्वतकी चारो दिशाओंमें नंदनवनमें चार जिनालय हैं जो कि छत्चीस योजन ऊंचे हैं। पचास | योजन लंबे, पच्चीस योजन चौडे और पच्चोस योजन प्रमाण ही प्रवेशमार्गके धारक हैं तथा पूर्व उत्तर
आठ योजन ऊंच, चार योजन चौडे और चार योजन ही लंबे द्वारोंके धारक हैं एवं जिनालयोंकी || शोभाका जैसा वर्णन होना चाहिये उसी वर्णनसे संयुक्त हैं।
नंदनवनके समान भूमिभागसे बासठ हजार पांचसौ योजनकी उंचाई पर सौमनसवन है जो कि Alचूडीके समान गोल परिधिका धारक है पांचसौ योजन चौडा है एवं पद्मवरवेदिकासे चारो ओर वेष्टिन ||
है। सौमनसवनके समीप मेरु पर्वतका वाह्य विस्तार चार हजार दोसौ बहचर योजन और एक योजनके ग्यारह भागोंमें आठ भाग है और उसकी वाह्य परिधि तेरह इजार पांचसौ ग्यारह योजन और एक योजनके ग्यारह भागों में छह भाग प्रमाण है। तथा सौमनसवनके समीप मेरुपर्वतका भीतरी विस्तार तीन हजार दासौ बहवर योजन और एक-योजनके ग्यारह भागों में आठ भाग प्रमाण है और अभ्यास
१-'पागुदगवारद्वाराणि' यह भी पाठ मिलता है और उसका अर्थ 'पूर्व उत्तर और दक्षिण' यह अये है।
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