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________________ C अध्याय ०रा० चापा सीता नदीसे उच्चर, विजयापर्वतसे दक्षिण, गंगा और सिंधुनदीके ठीक मध्यभागमें क्षेमा नामकी 1६|| राजधानी है। इसप्रकार यह कच्छ देशका वर्णन कर दिया गया। इसीप्रकार बाकीके सुकच्छ आदि ६ सात देश भी पूर्व देशकी ओर समझ लेने चाहिये। .. लवणसमुद्रकी वेदीसे पश्चिम, पुष्कलावती देशसे. पूर्व, सीतानंदीसे उचर, नीलांचलसे दक्षिणकी || ओर एक देवारण्य नामका वन है। जो कि सीता नदीके मुखके पास दो हजार नौसौं बाईस योजन चौडा है और सोलह हजार पांचसौ बानवै योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में दोभागलंबा है। सीतानदीसे दक्षिण, निषधाचलसे उचर, वत्सदेशसे पूर्व और लवणसमुद्र की वेदीसे पश्चिमकी ओर भी देवारण्य वन है और उसकी चौडाई लंबाई पहिले देवारण्यवनके समान है। सीतानदीकी दक्षिण ओरका जो पूर्वविदेहक्षेत्र है वह चार वक्षारपर्वत और तीन विभंगा नदियोंसे है| आठ खंडरूप हो गया है और उन आठों खंडोंका आठ चक्रवर्ती उपभोग करते हैं। उन वक्षारपर्वतोंके | त्रिकूट, वैश्रवणकूट, अंजन और आत्मांजन ये चार नाम हैं और इन चारों वक्षारपर्वतोंके मध्य में रहने वाली तप्तजला १ मचजला २ और उन्मचजला ३ ये तीन विभंग नदियां हैं । इन वक्षारपर्वत और नदियोंसे विभाजित आठ खंडोंके वत्सा १ सुवत्सा २ महावत्सा ३ वत्सावती ४ रम्या ५ रम्यका ६ रमणीया ७ और मंगलावती ये आठ नाम हैं। तथा इन देशोंके अंदर जो आठ राजधानी हैं उनके सुसीमा १ कुंडला २ अपराजिता ३ प्रभाकरी ४ अंकावती ५ पद्मावती' शुभा ७ और रत्नसंचया. | वतीये आठ नाम है। वत्सा आदि आठो देशोंमें रक्ताऔर रक्तोदानामकी दोदोनदियां हैं और एक एक विजयापर्वत है। इन नदियों और विजयाद्धोंकी चौडाई लंबाई आदिका प्रमाण पहिली नदियों MEGASHISHEDAAEEEEECHEBAISRAEDISEASISRO GeeCRIMEGESGHLOROPER -MS-MBER -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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