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अध्यार
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है| नील पर्वतका स्पर्श करते हैं अर्थात् इनकी दक्षिण कोटि सीता नदी तक और उत्तर कोटि निषधाचल |
तक है। ये चारो वक्षार पर्वत चार चार सौ योजन ऊंचे और सौ सौ योजन गहरे हैं तथा प्रदशोंकी वढवारीसे वर्धमान सीता नदीके अंतमें पांचप्तौ योजन ऊंचे और एक सौ पचीस १२५ योजन गहरे | | हैं, घोडेके स्कंधके समान आकारवाले हैं और सर्वत्र पांच सौ योजन चौडे हैं तथा उनकी लंबाई सोलह ६ हजार पांचसौ वानवै १६५९२ योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें दो भाग प्रमाण है।
___चारो वक्षरों में चित्रकूट वक्षारके ऊपर सिद्धायतनकूट १ चित्रकूट २ कच्छविजयकूर ३ और सुकच्छविजयकूट ४ ये चार कूर हैं। पद्मकूट वक्षार के उपर सिद्धायननकूट १ पद्मकूट २ महाकच्छाकूट ३
और कच्छवद् विजय कूट ४ ये चार कूट हैं । नलिन कूट के कार सिद्धायतन कूट १ नजिकूर २ नलि. | नार्वत कूट ३ और लांगलावर्तकूट ये चार कूट है और एकशिल वक्षारपर्वत के ऊपर सिद्धायतनकूर | १ एकशिलकूट २ पुष्कल कूट ३ और पुष्कलावर्त कूट ये चार कूट हैं। हिमवान पवर्त के कूटों का जो की परिमाण कह आये हैं उसी परिमाणकेधारक ये कूर हैं तथा हिमवान पर्वत के कूटोंपर जिसपकार जिन
मंदिर और प्रासादोंका वर्णन कर आये हैं उसीप्रकार इन कूटोंके भी जिनमंदिर और प्रासादोंका वर्णन हूँ | समझ लेना चाहिये । चारो वक्षार पर्वतोंके जो सिद्धायतन कूट हैं वे सीता नदीके प्रवाहकी ओर हैं ओर | इन समस्त कूटोंमें अपने अपने कूट के नामधारी देवगण निवास करते हैं।
ग्राहावती हूदावती और पंकावती ये जो तीन विभंग नदियां कार कह आये हैं उनकी उसावे | अपने ही समान नामोंके धारक कुंडोंले हुई है । वे कुंड दो हजार योजन चौडे लंबे, वायी तले धारक, गोल, कुंडोंके ही समान नामोंकी घारक देवियोंसे शोभायमान, दश योजन और दो कोश ऊंचे,
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