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एक ही कहना ठीक है भिन्न २ मानने की आवश्यकता नहीं ? सो ठीक नहीं । उचाप और प्रकाश दोनों ही एक साथ सूर्य से प्रकट होते हैं किंतु उत्ताप दाह पैदा करता है और प्रकाश उजाला करता है इस - लिये दाह और उद्यतरूप भिन्न २ सामर्थ्य रहने के कारण प्रताप और प्रकाश भिन्न २ माने जाते हैं । उसीप्रकार ज्ञान और दर्शन यद्यपि आत्मामें एक साथ प्रकट होते हैं तो भी तत्त्वों का जानना ज्ञान और उनका श्रद्धान दर्शन कहा जाता है इसलिये तत्त्वज्ञान और श्रद्धान के भेद से ज्ञान और दर्शन भिन्न २ हैं । तथा यह भी वात है कि
दृष्टविरोधाच्च ॥ २२ ॥
एक साथ प्रगटवा उत्पन्न होना ही एकतामें कारण है अर्थात् जो पदार्थ एक साथ प्रगट वा उत्पन्न होते हैं वे जुदे २ नहीं होते एक ही माने जाते हैं जिसका यह मत है वह प्रत्यक्षबाधित है क्योंकि गौके दोनों सींग एक साथ प्रकट होते हैं परन्तु एक न होकर दोनों जुदे जुदे रहते हैं इसलिये जिसतरह एक साथ प्रगट होनेवाले दोनों सींग एक नहीं हो सकते, भिन्न २ रहते हैं उसी प्रकार एक साथ आत्मा में प्रकट होनेवाले भी ज्ञान दर्शन एक नहीं माने जा सकते भिन्न २ ही मानने होंगे। तथाउभयनय सद्भावेऽन्यतरस्याश्रितत्वाद्वा रूपादिपरिणामवत् ॥ २३ ॥
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द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक के भेदसे नय दो प्रकारका है यह ऊपर कहा जा चुका है। परमाणु द्वयक आदि पुद्गल द्रव्योंमें बाह्य अभ्यन्तर कारणोंसे रूप रस आदि एक साथ प्रगट होते हैं । दोनों नयों में वहां पर जिस समय पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा की जाती है उस समय पुद्गलकी रूप पर्याय एवं रस आदि पर्यायें जुदी २ मानी जाती हैं इसलिये पुद्गल द्रव्यमें अपने कारणोंसे एक साथ उत्पन्न
भाषा
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