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अध्याय
SCORRECICIBPSERECOGLOBALABALUBA
जो उदीरित शब्दका उल्लेख किया गया है वह उदीरण के कारणों के प्रकार बतलाने के लिये है । वे इस प्रकार हैं
नरकोंमें नारकियोंको तपे हुए लोहेके रसका पान कराया जाता है। तपे हुए खंभोंसे आलिंगन | कराया जाता है । पर्वत और शाल्मलि वृक्षपर चढाया उतारा जाता है । धनोंसे कूटा जाता है । वसूली खुरफासे काटा जाता है । क्षार तपे तेलमे फेंका जाता है। लोहेकी कढाइयोंमें पकाया जाता है । भारमें भूजा जाता है एवं कोलूमें पेरा जाता है। शूल और शलाकासे छेदा जाता है । आरेसे चीरा जाता है। | अंगीठीमें जलाया जाता है सुईके अग्रभागके समान नोकदार घास पर घसीटा जाता है । वाघ रीछ |गेंडा कुचा शृगाल भेडिया कोक विल्लो नौला चूहा सांप काक गीध कंक-कांकपक्षी उल्लू और गीध | आदि पक्षियोंसे खवाया जाता है । गरम वाल्में घुमाना, तलवारके समान तीक्ष्णं पचोंके वृक्षोंसे व्याप्त
वनों में प्रवेश करना, महानिकृष्ट पीव रक्त आदिसे परिपूर्ण वैतरणी नदीमें डुबाना आदि, एवं अन्य भी है परस्पर अनेक प्रकारकी प्रेरणासे महासंक्लिष्ट असुरोंके द्वारा नारकियोंको दुःख भोगने पड़ते हैं।
यदि यहाँपर यह शंका हो कि असुर जातिके देव क्यों नारकियोंको वैसा कष्टं पहुंचाते हैं ? तो || उसका समाधान यह है कि उन्हें ऐसे पाप कार्योंके करनेमें खभावतः प्रेम रहता है सारार्थ यह है कि8. जो मनुष्य राग द्वेष और मोहसे तिरस्कृत हैं और जिनका पुण्य अशुभ पापकर्मका उत्पादक है उन | निर्दयी मनुष्यों को जिसप्रकार बैल भैंसे बकरे सूअर मुर्गे बटेर लाई आदि पक्षी वा मल्लोंको आपंसमें
युद्ध करते और एक दूसरेको बडी क्रूरतासे मारते देख अत्यंत आनंद होता है उसीप्रकार उन दष्ट | असुरोंको भी नारकियोंको वैसे कष्ट देने और उन्हें आपसमें लडते मारते देखनेसे महान आनन्द होता है।
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