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________________ अध्याय | दिशाओंमें साठ और चारो विदिशाओंमें छप्पन इस प्रकार सब मिलकर एकसौ सोलह हैं । तीसरे | तरातार पाथर्ड में चारो दिशाओंमें छप्पन और चारो विदिशाओंमें वावन इसप्रकार एकसौ आठ विले हैं। चौथे वर्चस्क पाथडेमें सौ विले हैं और वे चारो दिशाओंमें वावन, चारो विदिशाओंमें अड़तालीस हैं। ७९७६ पांचवें वैमनस्क पाथडेमें चारो दिशाओं में मिलकर अड़तालीम और चारो विदिशाओंमें मिलकर | चवालीस हैं इसप्रकार सब विले वानवे हैं । छठे खार पाथडेमें चारो दिशाओंमें मिलकर चवालीस और | चारो विदिशाओंमें मिलकर चालीस इसपकार चौरासी विले हैं। सातवे आखाट पाथडेमें चारो ६ दिशाओंमें चालीस और चारो विदिशाओंमें छचीस इसप्रकार सब विले छहत्तर हैं। इसप्रकार ये | अणिवद्ध विले सातसौ हैं इन्हें सात पाथडोंके सात इंद्रक विलोंके साथ जोडनेसे श्रेणिवद्ध और इंद्रक | | दिलोंकी संख्या सातसै सात होती है तथा इसी पृथिवीमें पुष्पप्रकीर्णक विले नौ लाख निन्यानवै | इजार दोसौ तिरानवे माने हैं इसप्रकार सबोंको जोडकर पंकप्रभा भूमिमें कुल विले दश लाख हैं। . पांचवी घूमप्रभा भूमिमें पांच पाथडे वतलाये हैं उनमें पहिले तम पाथडे सब विले अडसठ कहे || हैं उनमें छत्तीस तो चारो दिशाओंमे हैं और बत्तीस चारो विदिशाओंमे हैं। दूसरे भ्रम पाथडे में चारो | दिशाओं में बच्चीस चारो विदिशाओं में अट्ठाईस इस प्रकार सब विले साठ हैं। तीसरे झप पाथडे सब विले मिलकर बावन है उनमें अट्ठाईस तो चारो दिशाओंमें है और चौवीस चारो विदिशाओंमें हैं। चौथे अंघ पाथडेमें चारो दिशाओंमें चौवीस और चारो विदिशाओंमें बीस इस प्रकार सब मिलकर चवालीस विले हैं। पांचवे तमिश्र पाथडे में सब विले छचीस हैं उनमें बीस विले तो चारो दिशाओं में हैं। | और सोलह विले चारो विदिशाओंमें हैं। इस प्रकार ये सब श्रेणिवद्ध विले दोसौ साठ हैं इनमें पांचो | CHAKASGEEKASHAURAHAS RECEMBASSARORAAAAA १०१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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