________________
HOTO
| समस्त नारकियोंके सर्वकाल वैक्रियिक शरीरका संबंध रहता है इसलिये प्रधानतासे देव और नार-15 |कियोंके वैक्रियिक शरीरका संबंध कहा गया है और तियंच एवं मनुष्योंके लब्धिकारणक वैक्रियिक | सर्वकाल नहीं रहता उसका कादाचित्क संबंध-कभी रहता है कभी नहीं रहता है इसलिये उनके वैकि. यिक शरीरका संबंध प्रधानतासे नहीं बतलाया गया यह तो सूत्रका तात्पर्य है और व्याख्याप्रज्ञप्ति दंडकोंमें तिथंच और मनुष्योंके चारो शरीरोंका संभव मानकर सामान्यरूपसे उनके अस्तित्वका प्रद|शन करदिया है इसलिये प्रकरणानुकूल अपने अपने अभिप्रायकी अपेक्षा कथन होनेसे कोई विरोध |
| नहीं तथा आहारक शरीर प्रमत्संयमी मुनिहीके होता है और तैजस कार्मण दोनों शरीर समस्त 18|संसारियोंके होते हैं इसप्रकार स्वामियोंके भेदसे भी औदारिक आदि शरीरोंमें भेद है। '.
___सामर्थभेद-औदारिक शरीरकी सामर्थ्य दो प्रकारको है एक भवकारणक, दूसरी गुणकारणक। || तियचोंमें सिंह अष्टापद आदि और मनुष्योंमें चक्रवर्ती वासुदेव आदिमें सामर्थ्यकी अधिकता और Ma हीनता दीख पडती है यह भवकारणक सामर्थ्य है क्योंकि चकूवर्ती वा अष्टापद आदिके होते ही वह || सामर्थ्य भी प्रगट हो जाती है और तपके बलसे मुनियोंके अंदर जो नाना प्रकारके शरीरोंकाधारण रूप
एक विशेष सामर्थ्य उत्पन्न हो जाती है वह गुणकारणक सामर्थ्य है । यदि यहांपर यह शंका की जाय कि18|| ऋषियों के शरीरोंके अंदर जो अत्यधिक सामर्थ्य प्रकट हो जाती है वह तपकी सामर्थ्य है औटा-|| 18||रिक शरीरकी सामर्थ्य नहीं ? सो ठीक नहीं। विना औदारिक शरीरके केवल तपकी अनेक प्रकारके । || शरीरोंका धारण करनास्वरूप अनुपम वैसी सामर्थ्य नहीं हो सकती इसलिये वह सामर्थ्य तपकी न
७११ मानकर औदारिक शरीरकी ही माननी होगी।
SAURPLANE91BRANGILIGURA
HOGorkeeeMPEGISLATUREGMiss