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________________ बरा० भाषा ७५७ HORSHISHIDAALANACHERE जिसप्रकार घट पट आदिके नाम भिन्न भिन्न हैं इसलिए आपसमें उनका भेद है उसीप्रकार औदा-18/ रिक वैक्रियिक आदिके नाम भी भिन्न भिन्न हैं इसलिए उनका भी आपसमें भेद है। लक्षणकी अपेक्षा भेद | इसप्रकार है-जिसका स्वरूप स्थूलता लिये हो वह औदारिक शरीर है ।जो अनेक प्रकारके ऋद्धिगुणोंसे | युक्त विकारस्वरूप परिणमनेवाला हो वह वैक्रियिक शरीर है। जिनका ज्ञान कठिनतासे हो ऐसे सूक्ष्म | पदार्थके स्वरूपका निर्णय करना जिसका लक्षण हो वह आहारक शरीर है । जो शंखके समान श्वेत | वर्णका हो वह तैजस शरीर है । उसके दो भेद हैं एक निःसरणस्वरूप दूसरा अनिःसरणस्वरूप । औदा-1 रिक वैक्रियिक और आहारक शरीरके अंदर रहनेवाला और शरीरकी दीप्तिका कारण जो शरीर हो । ४ वह अनिःसरणात्मक तेजस शरीर है और जो तीक्ष्ण चारित्रके धारक असंत कुद्ध यतिके औदारिक शरीरसे आत्मप्रदेशोंके साथ बाहर निकलकर और जलानेयोग्य पदार्थों को चारो ओरसे वेष्टित कर ₹ विद्यमान हो और जिसप्रकार धान्यकी राशि और हरे हरे पदार्थों से परिपूर्ण स्थानको अग्नि जला डालती है और जलाकर ही उसका पीछा छोडती है बीचमें नहीं बुझती उसीप्रकारे तैजस शरीरने जितने है पदार्थों को जलानेके लिये व्याप्त कर रक्खा है वे जबतक नहीं जल जाते तबतक बहुत कालतक उन पदार्थों को व्याप्त किये जलाता रहे और जलाकर ही पीछा छोडे वह निःसरणात्मक तैजस शरीर है । तथा समस्त कर्म और शरीरोंका उत्पन्न करना ही जिसका लक्षण हो वह कार्मण शरीर है, । इसप्रकार | क्षणोंके भेदसे औदारिक आदि शरीरोंका भेद है। ___ कारणकी अपेक्षा भेद-औदारिक शरीरकी उत्पत्रिमें औदारिक शरीर नामकर्म कारण है। वैकि'यिक शरीरकी उत्पचिमें वैक्रियिक शरीर नामकर्म कारण है। आहारक शरीरकी उत्पचिमें आहारक COUGURUGSAOREGISGARMACHALGetule
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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