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BREASEA
|अबाप
औदारिक आदि मूर्तिमान कार्य हैं और उनकी उत्पचि काँसे मानी है इसलिये कर्म भी मूर्तिक 51 ६) पदार्थ हैं यह वात स्वतः सिद्ध है। सारार्थ-कार्यमें जितने गुण दीख पडेंगे वे सब कारणके गुण माने | || जायगे क्योंकि कारणके अनुकूल ही कार्य होता है। कर्मोंके कार्य औदारिक आदिमें मूर्तिकपना दीख
पडता है इसलिये उनके कारण कर्ममें भी मूर्तिकपना स्वभावसिद्ध है। इस रीतिसे नैयायिक.आदिने || जो अदृष्ट-धर्म अधर्मरूप गुणसे जो औदारिक आदि शरीरोंकी उत्पचि. मान रक्खी है वह मिथ्या है || P | क्योंकि अदृष्ट अर्तिक, आत्माका गुण और निष्क्रिय पदार्थ है उससे मूर्तिक और क्रियावान् औदा-19 रिक मादि शरीरोंकी उत्पत्ति नहीं हो सकती।
- औदारिकग्रहणमादावातस्थूलत्वात् ॥१९॥ ___ सब शरीरोंमें मौदारिक शरीर अत्यन्त स्थूल इंद्रियोंका विषय है इसलिये सबसे पहिले सूत्रमें | औदारिक शरीरका उल्लेख किया गया है।
उत्तरेषां क्रमः सूक्ष्मक्रमप्रतिपत्यर्थः॥२०॥ औदारिककी अपेक्षा वैकिार्यक, वैक्रियिककी अपेक्षा आहारक इत्यादि क्रमसे उचरोचर शरीर I सूक्ष्म हैं यह वात बतलाने के लिये सूत्रमें औदारिकके बाद वैक्रियिक,वैक्रियिकके बाद आहारक इत्यादि || क्रमका उल्लेख है। परं परं सूक्ष्म इस सूत्रसे वैक्रियिक आदि शरीरोंकी सूक्ष्मता स्वयं सूत्रकार आगे बतलावेंगे ॥३॥
जब औदारिक शरीर इंद्रियोंसे जाना जाता है तब वैक्रियिक आदि शरीरोंका इंद्रियोंसे ज्ञान है| क्यों नहीं होता ? इसका समाधान सूत्रकार देते हैं- '
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S CENDABASAHERE