SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 714
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याप PostSORRUPDFORORE जीवोंकी जो मोडारहित सीधी गति होती है उसे इषुगति कहते हैं । इस इषुगतिमें एकसमय लगता है। अर्थात् एकही समयमें शरीर छोडना और दूसरा शरीर ग्रहण करना ये सब कार्य हो जाते हैं।इसी लिए इषुगतिमें संसारी जीव अनाहारक नहीं हैं। जिसतरह हाथसे तिरछी ओर फेंके हुए पदार्थकी गति एक मोडा लेकर होती है उसीप्रकार संसारी जीवकी जो गति एक मोडा लेकर हो वह पाणिमुक्तागति है कहलाती है और उस गतिमें दो समय लगते हैं। जिसतरह लांगल-हलमें दो जगह मोड रहती है उसी टू तरह जिस गतिमें दो मोडे लेने पडें उसे लांगलिकागति कहते हैं और उसके होनेमें तीन समय लगते हैं है हैं। तथा जिसप्रकार गौके मूत्रमें बहुत मोडे रहते हैं उसीप्रकार जिस गतिमें तीन मोडे लेने पडें वह , गोमूत्रिकागति है और इसके होने चार समय लगते हैं। चारों गतियोंमें पहिली इषुगति संसारी और ॐ मुक्त दोनो प्रकारके जीवोंके होती है परंतु शेष गतियां केवल संसारी जीवोंके ही होती हैं ॥२८॥ जब मोडेवाली गतियोंकी व्यवस्था चार समय तक मानी है तब जो गति मोडारहित है वह हूँ कितने समयमें संपन्न होती है इस बातको सूत्रकार कहते हैं एकसमयाविग्रहा ॥२६॥ मोडारहित गति एक समयमात्र ही होती है । इसीको ऋजुगति वा इषुगति कहते हैं। १-अविग्रहकसमया कथितेषुगतिर्जिनैः । अन्या द्विसमया प्रोक्ता पाणिमुक्तकविग्रहा ॥१०॥ द्विग्रिहां त्रिसमयां प्राहुलौंगलिकां मनाः । गोमूत्रिका तु समपैश्चतुर्मिः स्पास्त्रिविग्रहा॥१.१ भगवान जिनद्रद्वारा कही गई मोडारहित इघुगति एकसमयमें होती है। एक मोढ़ावाली पाणिमुक्तांगति दोसमयमें, दो मोडेवालो लांगलिका वीन समयमें और तीन मोटावाली गोमूत्रिका गति चार-समय होतो है । तस्मातार पृष्ठ ८५। JABREAPSARAMROPSISRO
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy