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________________ SU अध्याय स०रा० भाषा ६७७ |६|| नामक नामकर्मके उदय रहनेपर स्पर्शन इंद्रियकी उत्पत्ति होती है इसप्रकार पृथिवीकायिक आदि ६ स्थावर जीव स्पर्शन इंद्रियके स्वामी हैं यह बात निरूपण कर दी गई ॥२२॥ L अब' रसना आदि इंद्रियों के स्वामियोंका निरूपण करते हैं कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैकवृद्धानि॥२३॥ अर्थ-लट चिउंटी भौंरा मनुष्य आदिके क्रमसे एक एक इंद्रिय बढती हुई है । अर्थात् लट (गिडार) या आदिके स्पर्शन और रसना ये दो इंद्रियां हैं। चिउंटी आदिके स्पर्शन रसना और घ्राणं ये तीन इंद्रियां || हैं। भौरा आदि जीवोंके स्पर्शन रसन प्राण और नेत्र ये चार इंद्रियां हैं तथा मनुष्य देव नारकी और 8 गौ आदिके पांचो ही इंद्रियां हैं। . एकैकमिति वीप्सानिर्देशः॥१॥ एक शब्दका दो बार उच्चारण करनेसे 'एकैकं' यह यहां वीप्सानिर्देश है। - बहुत्वनिर्देशः सर्वैद्रियापेक्षः ॥२॥ . __'एकैकवृद्धानि' यहांपर जो बहुवचनका निर्देश किया गया है वह सब इंद्रियों की अपेक्षा है । एकैकं । वृद्धमेषां तानि एकैकवृद्धानि अर्थात् एक एक इंद्रिय आधेक है यह एकैकवृद्धानि' पदका विग्रह है यहां पर यह शंका उठती है कि एकैकवृद्धानि हम वाक्यका एक एक इंद्रिय अधिक है यह जो अर्थ माना है। | वहां अधिकपना पहिलैकी इंद्रियोंमें है कि उत्तरकी इंद्रियोंमें है अर्थात् स्पर्शन इंद्रिय रसना अधिक कही है। | जायगी कि रसना इंद्रिय स्पर्शन अधिक कही जायगी ? इस शंकाकी निवृचि वार्तिककार करते हैं ६७७ असंदिग्धं स्पर्शनमेकैकेन वृद्धमित्यादिविशेषणात् ॥३॥ MUSALEMANDIRAKESHARECEMORRHOTOCHERE BASHODHRADURAISINSOMDAFan JoriteRUR मा
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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