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________________ अब्बाब PLEARCBRUARCOACHAR भी ठीक नहीं। यदि पदार्थोंका भेद नामोंके भेदपर निर्भर हो तब तो स्पर्श आदि नामोंके भेदसे स्पर्श आदि गुणोंका भेद युक्तियुक्त माना जाय परंतु वैसा तो है नहीं क्योंकि द्रव्य गुण और कर्म यहां पर | नामोंका अभेद रहते भी पदाथोंका भेद माना गया है अर्थात् द्रव्य यह नाम एक है तथापि द्रव्योंके | पृथिवी आदि अनेक भेद हैं। गुण यह नाम एक है तथापि रूप आदि उसके भेद अनेक हैं एवं कर्म यह नाम एक है तो भी उत्क्षेपण अवक्षेपण आदि उसके भेद अनेक हैं । इसरीतिसे द्रव्य आदिमें नामके || एक रहनेपर भी जब पदार्थोंका भेद है तब 'नामोंके भेदसे पदार्थ भिन्न भिन्न माने जाते हैं। यह व्याप्ति है सिद्ध न हो सकी इसलिये स्पर्श रस आदि नामोंके भेदसे स्पर्श आदि गुणोंका भेद नहीं माना जा है सकता। यदि कदाचित् यहांपर यह शंका की जाय कि___द्रव्य गुण और कर्ममें प्रत्येकको जो अनेक अनेक बतलाया है वह युक्त नहीं किंतु वे एक ही एक है ? सो भी ठीक नहीं। महान अहंकार पंचतन्मात्रा आदि स्वरूप परिणत होनेवाले और पृथक् रूपसे अनुपलब्ध सत्त्वगुण रजोगुण और तमोगुणमें प्रत्येकको सांख्योंने अनेक अनेक प्रकारका माना है। यदि द्रव्य गुण कर्ममें प्रत्येकको एक एक माना जायगा तो सत्वगुण आदिमें भी प्रत्येकको एक एक मानना पडेगा । जिससे सत्त्वगुण आदिमें प्रत्येकको अनेक प्रकार माननेकी प्रतिज्ञा छिन्न भिन्न हो जायगी। यदि यहांपर यह कहा जायगा कि वे एक ही एक हैं तब उनमें व्यक्त और अव्यक्त स्वरूपके भेदसे जो कल्पना की गई है वह व्यर्थ हो जायगी इसलिये स्पर्श आदि नामोंके भेदसे जो स्पर्श आदि गुणोंके सर्वथा भेदकी शंका की गई थी वह खंडित हो गई। वास्तवमें जहांपर द्रव्यकी विवक्षा है वहांपर | ॐ स्पर्श आदि गुण स्पर्शादिमान पदार्थसे भिन्न नहीं इसलिये द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा वे कथंचित् एक REGISTRIECERABARSASREEGANESGACASHRESGRESS ६७२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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