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________________ अम्बाव भाषा | आदि सब द्रव्योंके परमाणु और स्कंध अपनी पुद्गल जातिको न छोडकर निमित्त कारणके बलसे स०रा० | आपसमें सब रूप, अर्थात् पृथिवी जलरूप, जल पृथिवीरूप, तेज पृथिवीरूप आदि परिणमते दीख | पडते हैं तब पृथिवी आदिको भिन्न भिन्न द्रव्य मानना अयुक्त है। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि। जब वायु आदिमें रूप आदिकी सचा मानी जायगी तो वहां पर रूप आदिका ज्ञान कैसे होगा ? | तो वहांपर प्रश्नके वदलेमें यह प्रश्न है कि परणाणुओंमें भी रूप आदिकी सचा मानी है वहांपर रूप || आदिका ज्ञान कैसे हो जाता है ? यदि यहांपर यह उत्तर दिया जायगा कि परमाणुओंके कार्यस्वरूप | स्थूल स्कंध आदिमें रूप आदि दीख पडते हैं । वे रूप आदि परमाणुओंमें रूप आदि बिना माने हो नहीं र सकते इसलिये इस अनुमान प्रमाणके बलसे परमाणुओंमें रूप आदि स्वीकार कर लिये जाते हैं तब वहांपर भी परमाणुओंमें रूप आदिके रहने पर उसके कार्यस्वरूप वायुमें वे न हों यह बात असम्भव है है। इसलिये परमाणुओंमें अनुमानप्रमाणसे रूप आदिकी सचा मानने पर वायुमें भी अनुमानप्रमाणसे रूप आदिका होना निर्बाध है।। तेषां च स्वतस्तद्वतश्चैकत्वं पृथक्त्वं प्रत्यनेकांतः॥५॥ __स्पर्श आदि गुणों की आपसमें वा स्पर्श आदि युक्त पदार्थों से अभिन्नता और भिन्नता अनेकांत ||६|| रूपसे मानी गई है इसलिये वे आपसमें वा स्पर्शादिभाव पदार्थोंसे कथंचित् अभिन्न और कथंचित् भिन्न या है। बहुतसे वादी स्पर्श आदिको सर्वथा एक ही मानते हैं। अन्य बहुतसे वादी उन्हें सर्वथा भिन्न ही | मानते हैं परंतु वह ठीक नहीं क्योंकि यदि सर्वथा स्पर्श आदिको एक ही माना जायगा-उनका आपसमें REGALAECAREERICAECAREGAORBाऊस 55PORAEBAISISABRDCRBCHORESMSARDAR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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