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________________ भाषा आत्मा और इंद्रिय दोनोंका भेद है । इसप्रकार आला और इंद्रियोंका कथंचित् भेदाभेद ही युक्तिसिद्ध व०० व्यवस्थित है । इसरीतिसे उपयुक्त हेतुओंके बलसे इंद्रियोंका वा आपसमें वा इंद्रियवानआत्मासे जिसप्रकार || || अध्याय | कथंचित् एकत्व और कथंचित् अनेकत्व व्यवस्थित है उसीप्रकार कथंचित् एकानेकस कथंचित् अव६६३क्तव्यत्व आदि भंग भी समझ लेने चाहिये ॥ १९॥ सूत्रकार स्पर्शन आदि पांचों इंद्रियोंका अब विषय प्रदर्शन करते हैं- . . ___ स्पर्शरसगंधवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥२०॥ अर्थ-स्पर्श रस गंध वर्ण और शब्द ये पांच क्रमसे उन पांचों इंद्रियोंके विषय हैं। इनमें स्पर्शन इंद्रियका विषय स्पर्श अर्थात् छना है । रसना इंद्रियका विषय रस अर्थात् स्वाद लेना है। प्राणइंद्रियका विषय सुगंधि दुर्गघि सूंघना है। नेत्रहंद्रियका विषय वर्ण अर्थात् रंग है और श्रोत्र इंद्रियका विषय ४ शब्दोंका सुनना है। स्पर्शादीनां कर्मभावसाधनत्वं द्रव्यपर्यायविवक्षोपपत्तेः॥१॥ जिससमय द्रव्यको विवक्षा की जायगी उससमय स्पर्श आदि कर्म साधन हैं और जिससमय पर्यायकी विवक्षा की जायगी उससमय भाव साधन है। उसका खुलासा इसप्रकार है___जहांपर प्रधानतासे द्रव्यकी विवक्षा है वहाँपर स्पर्शन आदि द्रव्यप्ले भिन्न नहीं इसलिए इंद्रियोंसे । वहांपर द्रव्यहीके साथ संबंध होता है अतः प्रधानतासे द्रव्यकी विवक्षा रहनेपर जिसके द्वारा स्पर्श (छूना) किया जाय वह स्पर्श, जिसके द्वारा चखा जाय वह रस, जिसके द्वारा सूंघा जाय वह गंध, ६६३ SEARSANSARSRCOSMADHAASARANG BASERISPIRISORECASSE% -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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