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________________ 45PEUSERSIDASISAR सरीसृप ५ और स्थावर ६ नामके स्थानों में उत्पचि होती है। और ज्ञानसे मोक्षकी प्राप्ति होती है रजो. गुण और तमोगुण जिससमय गौण पड जाते हैं एवं सत्वगुण प्रधान हो जाता है उससमय प्रकृति और पुरुषका भेदावेज्ञान-तत्त्वज्ञान होता है उससे मोक्षको प्राप्ति होती है तथा विपर्ययज्ञानसे कर्मबंध होता 9 है और वह विपर्ययज्ञान आत्मस्वरूपमे भिन्न प्रकृति अंतःकरण अभिमान और शब्द स्पर्श रस गंध 2 वर्ण रूप पंचतन्मात्र तथा अहंकार तत्त्व के विकार पांच इंद्रियां उन्हें अपना माननेसे होता है इसतरह ९ इस सांख्य सिद्धांतमें तत्त्वज्ञानसे ही मोक्षका उल्लेख है । तथा तथाऽनात्मीयेष्वात्माभिमानविपर्ययात्तस्य शब्दाद्युपलब्धिरादिः, गुणपुरुषांतरोपलब्धिरंतः॥४॥ है कान आदि इंद्रियों के विषय शब्द स्पर्श रस आदि यद्यपि चेतनसे भिन्न हैं क्योंकि वे जड प्रकृति है के परिणाम हैं तो भी शब्द स्पर्श रस आदिका सुनने छूने और चाखनेवाला आदि मैं हूं इसप्रकारकी है १ अभेद बुद्धि रखनेसे तथा शिर हाथ आदिका समूहरूप शरीर पृथ्वी जड़ पदार्थों का बना हुआ है तो 9 भी उस शरीरस्वरूप में ही हूं' इसप्रकारकी अभेद बुद्धि रखनेसे संसारमें घूमना पडता है किंतु जिस 5 ८ समय पुरुष-आत्माको यह ज्ञान हो जाता है कि पुरुषके सिवाय अन्य सब विकार प्रकृतिका कीया ६ हूँ हुआ है। वह रजोगुण तमोगुण और सत्वगुणस्वरूप है । अचेतन और भोग्य है तथा पुरुष भोगनेवाला हूँ हूँ है पर कुछ करनेवाला नहीं वह चेतन और प्रकृतिसे भिन्न है एवं रजोगुण तमोगुण और सत्वगुण ये ऐ है सभी गुण अचेतन हैं उससमय प्रकृति और पुरुषका भेदविज्ञान हो जाता है और उस भेदविज्ञानसे है - संसारका नाश हो जाता है इस रूपसे ज्ञानसे मोक्ष और विपर्यय-अज्ञानसे कर्मबंध होता है यह एक देशी सांख्यकारोंका सिद्धांत है । तथा SPASSPORTRESCRESCRIGRSCIETIES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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