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________________ PEG ভেণ%% -এল अन्वेषणयिस्य वा करणत्वोपपत्तेः ॥ ४१ ॥ अथवा ढूंढनां रूप अर्थको कहनेवाले मार्ग धातुसे भी मार्ग शब्दकी सिद्धि होती है तथा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान आदिको करण कारक पहिले मान ही लिया है इस रूपसे जिनके द्वारा मोक्ष ढूंढी जा सके वह मोक्ष मार्ग है यह मोक्षमार्ग शब्दका अर्थ है । मोक्ष सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र गुणों के द्वारा ढूंढी जाती है इसलिये सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ही मोक्षमार्ग हैं । यदि वहां पर यह कहा जाय कि युक्त्यनभिधानादमार्ग इति चेन्न मिथ्यादर्शनाज्ञानासंयमानां प्रत्यनीकत्वादौषधवट् ॥ ४२ ॥ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ही मोक्षका मार्ग है इसमें कोई युक्ति तो दी नहीं फिर विना युक्तिके यह कैसे माना जाय कि सम्यग्दर्शन आदि ही मोक्षके मार्ग हैं अन्य नहीं । इसलिये सम्यग्दर्शन आदिको मोक्ष मार्गपना नहीं सिद्ध हो सकता ? सो ठीक नहीं । जिस तरह वात पित्त आदिके विकारों से उत्पन्न होनेवाले रोगोंको मय कारणोंके नष्ट करनेवाली स्निग्ध रूक्ष-चिकना और रूखापना गुणकी धारक औषधि होती हैं उसी तरह मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र आदि दोषों को मय उनके कारणों के नष्ट करनेवाले सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र हैं । यदि ऐसा नहीं माना जायगा तो मिथ्यादर्शन आदिके द्वारा संसार में ही घूमना पडेगा इस रीति से जब सम्यग्दर्शन आदि ही मोक्ष मार्ग युक्तिसे सिद्ध हो चुके तब वादीकी यह शंका कि - " सम्यग्दर्शनादि ही मोक्षके मार्ग हैं यह वात विना युक्ति के ठीक नहीं' वह सर्वथा निरर्थक है । इस प्रकार श्री तत्त्वार्थ राजवार्तिकालंकारकी भाषाटीका में प्रथमाद्धिक समाप्त हुआ ॥ १ ॥ ल ৬- ৬ भाषा ६
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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