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________________ मध्याब सश भाषा ६१५ 5555AMSABHA है जिसप्रकार रक्त और श्वेत वाँकी अपेक्षा कुरवा जातिके वृक्षोंकी नास्ति रहते भी वर्ण सामान्यकी अपेक्षा उनकी नास्ति नहीं है अर्थात रक्त और श्वेत वर्गों से भिन्न वर्ण वाले कुरवक जातिके वृक्ष हैं। | उसीप्रकार वस्तु परस्वरूपसे नहीं है ऐसा निषेध रहनेपर भी वह स्वस्वरूपसे भी नहीं है यह बात असिद्ध है किंतु स्वस्वरूपसे उसका होना ही निश्चित है। कहा भी है__ अस्तित्वमुपलब्धिश्च कथंचिदसतः स्मृतेः । नास्तितानुपलब्धिश्च कथंचित्सत एव ते ॥१॥ सर्वथैव सतो नेमो धर्मों सर्वात्मदोषतः। सर्वथैवासतो नेमौ वाचां गोचरतात्ययात् ॥२॥ कथंचित् असत् पदार्थका भी स्मरण होता है इसलिये अस्तित्व और उपलब्धि धर्म कथंचित्र असत् पदार्थके माने हैं । कथंचित् सत् पदार्थकी ही नास्ति और अनुपलब्धि होती है असत्की नहीं इसलिये नास्तिता और अनुपलब्धि कथंचित् सत् पदार्थकी ही मानी है । अस्तित्व और उपलब्धि जो ये दो धर्म सत् पदार्थके माने हैं वे कथंचित् रूपसे माने गये हैं सर्वथा रूपसे नहीं क्योंकि यदि सर्वथा । | रूपसे उन्हें माना जायगा तो सर्वात्म दोष होगा अर्थात् सत्पदार्थका कभी विनाश और उत्पत्ति न होगी | और न कभी उसका अप्रत्यक्ष होगा किंतु उसे हमेशा विद्यमान और प्रत्यक्ष ही मानना पडेगा जो कि 15 | बाधित है । तथा कथंचित् असत् पदार्थके जो नास्तित्व और अनुपलब्धि धर्म माने हैं वे भी कथंचित् ६ 8 रूपसे ही हैं सर्वथा रूपसे नहीं क्योंकि यदि उन्हें सर्वथा रूपसे मान लिया जायगा तो असत् पदार्थ भी वचनका विषय होता है इसलिये वचनविषयत्वेन उसका अस्तित्व और उपलब्धि मानी है परंतु अब सर्वथा रूपसे जब उसकी नास्तिता और अनुपलब्धि ( अप्रत्यक्ष ) माना जायगा तो असत् पदार्थ || वचनका विषय नहीं हो सकेगा। इसरीतिसे 'नास्त्यात्मा अप्रत्यक्षत्वात्' इस अनुमानमें आत्मामें जो SileSRRUKHARGELAMMAUCRKA PUR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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