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________________ अध्याय PRESCRECABINDRASANAS UPREMOGARCANCEB%AUReelam विना दीपक आदिकी सहायताके बहुतसे जीवोंको नेत्र आदि इंद्रियोंके द्वारा घट पट आदि | | पदार्थोंका ज्ञान नहीं होता इसालिये उनके ज्ञानमें दीपक आदि कारणोंका सन्निधान उपयुक्त है परंतु बाघ बिल्ली आदि बहुतसे जीवोंको पदार्थोंके जाननेमें दीपक आदिकी सहायता नहीं लेनी पडती इस-1 | लिये उनके ज्ञानमें दीपक आदिका सन्निधान उपयुक्त नहीं। पदार्थों के ज्ञानमें चक्षु आदि इंद्रियोंके भी | कारणपनेका नियम नहीं क्योंकि जो जीव पंचेंद्रिय है उनकी पांचों इंद्रियां पदार्थोंके ज्ञानमें कारण होती 18 हूँ हैं। जो विकलेंद्रिय हैं उनकी चार तीन वा दो इंद्रियां कारण पडती हैं और जो एकेंद्रिय हैं उनकी एक ही स्पर्शन इंद्रिय कारण पडती है । ज्ञानकी उत्पचिमें मन वचन कायरूप योग भी नियमितरूपसे कारण नहीं क्योंकि जो जीव असैनी पंचेंद्रिय हैं उनके मनोयोग नहीं होता । सैनी पंचेंद्रियोके तीनों योग | के कारण होते हैं। एकेंद्रिय जीव, विग्रहगतिवाले जीव, तथा समुद्धात दशाको प्राप्त भगवान सयोगकेवली | एक काययोग ही कारण पडता है। तथा इसीतरह द्रव्ययोगसे जायमान भाव मन वचन कायस्वरूप भावयोग भी नियमित रूपसे ज्ञानकी उत्पत्ति में कारण नहीं क्योंकि उपर्युक्त द्रव्ययोगके समान असेनी जीवोंके भाव मनोयोग कारण नहीं एकेंद्रिय आदि जीवोंके केवल भावकाययोग ही कारण है शेष भाव-18 योग नहीं संज्ञी पंचेंद्रियोंके तीनों प्रकारके भावयोग ज्ञानकी उत्पत्ति में कारण होते हैं । तथा क्षीणकषाय गुणस्थानसे पहिले पहिले क्षायोपशमरूप भाव है और उसके बाद क्षायिकभाव है । इसपकार वाह्य और अभ्यंतर कारणोंके यथासम्भव सन्निधान रहते जिसप्रकार सुवर्णमयी कडे बाजूबंध और कुण्डल आदि विकार सुवर्णका अनुविधान करनेवाले हैं-सुवर्णसे भिन्न नहीं उसीप्रकार जो परिणाम अनादिकालीन आत्माके चैतन्य स्वभावका अनुविधान करनेवाला अर्थात् चैतन्य स्वरूप है उसका नाम उपयोग है।शंका
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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