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अध्याय
१०रा० भाषा
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अन्यद्रव्यासाधारणास्त्रयः पारिणामिकाः॥१॥' जीवत्व भव्यत्त्व अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक भाव आत्माके सिवाय अन्य किसी भी द्रव्यमें न रहनेके कारण आत्माके विशेष भाव हैं । ये तीनों भाव पारिणामिक क्यों हैं वार्तिककार इस बातको MP स्पष्ट करते हैं
कर्मोदयक्षयोपशमक्षयोपशमानपेक्षत्वात् ॥२॥ जिन भावोंकी उत्पत्ति कमाँके उदय क्षय उपशम और क्षयोपशम कारण नहीं पडते वे पारिणा६ मिक भाव कहे जाते हैं । जीवत्व भव्यत्व अभव्यत्वरूप भावोंकी उत्पत्तिमें कर्मोंके उदय क्षय उपशम || क्षयोपशम कारण नहीं पडते किंतु ये जीव द्रव्यके स्वरूप हैं-अनादिकालसे उक्त भावोंका स्वरूप संबंध =|| जीवके साथ बराबर चला आया है कितना भी बलवान आत्माके साथ कर्मों का संबंध हो जाय इन || भावोंका विपरिणाम नहीं हो सकता इसलिये जीवके गुण स्वरूप ही होनेके कारण, जीवल आदि पारिणामिक ही भाव हैं । शंकाआयुर्द्रव्यापेक्षं जीवत्वं न पारिणामिकमिति चेन्न पुद्गलद्रव्यसंबंधे सलन्यद्रव्यसामर्थ्याभावात् ॥ ३॥
सिद्धस्याजीवत्वप्रसंगात् ॥४॥ अनादि कालसे आत्माका परिणाम होनेसे जीवत्व भावको पारिणामिक भाव बताया है परंतु वह 5 ठीक नहीं किंतु आयुकर्मके उदयसे जो जीवे उसका नाम जीव है इसरीतिसे आयुकर्मके उदयके आधीन | जीवत्वकी उत्पचि होनेसे उसे औदायक भाव ही मानना ठीक है पारिणामिक भाव नहीं हो सकता ? । सो ठीक नहीं । पुद्गल द्रव्य के संबंधसे अन्य द्रव्यकी-जीव द्रव्यकी सामर्थ्य नहीं प्रगट हो सकती। जीवत्व
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