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________________ EURESCREERUARREARLASSEMANCHECRUARDCREDISORS ऊपर औदयिक भावको इक्कीस प्रकार बतला आए हैं सूत्रकार अब उन भेदोंको गिनाते हैंगतिकषायलिंगमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतु स्यकैकैकैकषड्भेदाः॥६॥ ४ मनुष्यगति देवगति नरकगति और तिर्यंचगति ये चार गति, क्रोध मान माया लोभ ये चार | कषाय, स्त्रीवेद पुंवेद नपुंसकवेद ये तीन लिंग, मिथ्यादर्शन अज्ञान असंयम असिद्धत्व एवं पीत पद्म शुक्ल | कृष्ण नील और कापोत ये छह लेश्या ये सब मिला कर इकोस भेद आदयिक भावके हैं। गतिश्च कषायश्च लिंगं च मिथ्यादर्शनं च अज्ञानं च असंयतच असिद्धश्च लेश्याश्च, गतिकषाय|लिंगमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याः । यह यहॉपर इतरेतरयोग द्वंद्वसमास है। चत्वारश्च चत्वारश्च त्रयश्च एकश्च एकश्च एकश्च एकश्च षद् च 'चतुश्चतुज्यकैकैकैकषद' ते भेदा येषां ते चतुश्चतुत्र्येकैकैकैकषड्भेदाः। यह यहां पर बंद्वपूर्वक बहुव्रीहि समास है । इस समासमें यहां पर दो वार चतुर शब्दका प्रयोग और चार वार एक शब्दका प्रयोग करनेसे यह शंका हो सकती है कि यहांपर बंद्वसमासका अपवाद स्वरूप एक शेष समास होना चाहिये । परंतु इसका समाधान ज्ञानाज्ञानेत्यादि सूत्रमें विस्तारसे | दे दिया गया है वही यहांपर समझ लेना चाहिये इसलिये यहां पर एक शेष समाप्त नहीं किया गया। है | वार्तिककार गति आदि शब्दोंका अब खुलासा अर्थ लिखते हैं गतिनामकर्मोदयादात्मनस्तद्भावपरिणामाद्गतिरोदयिकी ॥१॥ जिस कर्मके उदयसे आत्मा नारकी आदि हो वह गति नामका नाम है और वह नरकगति तिर्यग्गति मनुष्यगति और देवगतिके भेदसे चार प्रकारका है । नरकगति नामक नामकर्मके उदयसे BABIRCLECISEASOUP ५४४
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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