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________________ दानांतराय कर्मके मर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर और सचामें उपशम रहनेपर और देश घाती स्पर्धकोंके उदय रहने पर दानलब्धि होती है । लाभांतरायकर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी || अध्याय क्षय रहनेपर और सचामें उपशम रहनेपर तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदय रहनेपर लाभलाब्धे होती है। को इसीतरह भोगांतराय आदि कर्मोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर और सत्तामें उपशम हूँ रहनेपर तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदय रहनेपर भोग आदि लब्धियां होती हैं। सूत्रमें जो सम्यक्त्व पद दिया है उससे यहां वेदक सम्यक्त्वका प्रहण है वही क्षायोपशमिक सम्य-है। क्व कहा जाता है । अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ मिथ्यात्व और सम्याग्मिथ्यात्व इन सर्वघाती छह प्रकृतियोंके उदयाभावी क्षय और सचामें उपशम रहनेपर तथा देशघाती सम्यक्त्व प्रकृतिके उदय | रहनेपर जो तत्त्वार्थ श्रद्धान है वह क्षायोपशामिक सम्यक्त्व कहा जाता है । अनंतानुबंधी क्रोध मान |5/ माया लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ इन बारह कषाय || रूप सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर और सचामें उपशम रहनेपर तथा देशघाती संज्वलन | | क्रोष मान माया लोभों से किसी एकके उदय रहनेपर और हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्ता स्त्री.] व वेद पुंवेद और नपुंसकवेद इन नव नोकषायोंके यथासंभव उदय रहनेपर आत्माका जो निवृचिरूप से है परिणाम है वह क्षायोपशमिक चारित्र है। यहांपर संज्वलन कषायादिकका जितने अंशोंमें उदय है। PI उतने अंशोंमें चारित्रका धात ही समझना चाहिये परंतु क्षायोपशमिक चारित्र पूर्ण चारित्र नहीं है इस-1 लिये उक्त कर्मोंका उदय रहता ही है परंतु जो चारित्रके बाधक कर्म हैं उनका उपशम रहना जरूरी है।।5/ तथा अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ अप्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ इन आठ कषायरूप PACLUGARCASRCASHOCEASRASGANA 55 BADAGARETRIES ५ .
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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