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________________ अध्याय DABANSHISRUSHREFRESCISFACCIENCREALIADRASIRECE क्रमसे अधिक शक्तिधारक परमाणु वर्गणाएँ मिलकर स्पर्धक कही जाती हैं, फिर दूसरी वर्गणा तब बनेगी जब कि एक साथ अनंतगुणे अविभाग प्रतिच्छेद आधक शक्तिवाले समान परमाणुओंका पिंड है। होगा फिर उससे एक एक अधिक शक्तिवाले परमाणुओंकी दूसरी तीसरी आदि वर्गणाऐं होंगी उनका ॐ पिंड दुसरा स्पर्धक होगा यही का आगे जानना चाहिये। तत्र ज्ञानं चतुर्विधं क्षायोपशमिकमाभिनिबोधकज्ञानं श्रुतज्ञानमवधिज्ञानं मनःपर्ययज्ञानं चेति ॥५॥ वीयांतराय श्रुतज्ञानावरण और मतिज्ञानावरण कर्मोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय होने दू है पर और सत्चामें उपशम रहनेपर तथा देशघाति स्पर्धकोंके उदय रहनेपर क्षायोपशमिक मतिज्ञान और हैं श्रुतज्ञान होते हैं। तथापि देशघाति स्पर्धकोंका अनुभाग अधिक और अल्परूपसे होता है इसलिये है। * गुणोंके घातनेमें भी कहींपर अधिकता और कहाँपर अल्पता हो जाती है जहाँपर आत्माके ज्ञानगुणका अधिकतासे घात है वहांपर अधिकज्ञान और जहांपर कुछ अल्पतासे घात है वहांपर स्वल्पज्ञान होता है इसीतरह श्रुतज्ञानकी अपेक्षा जहां कुछ अधिकतासे घात है वहां अल्पश्रुतज्ञान जहां स्वल्पतासे घात । है वहां अधिक श्रुतज्ञान होता है इसीप्रकार अवधि मनःपर्यय क्षायोपशमिक ज्ञानोंमें भेदसमझना चाहिये। वीर्यांतराय और अवधिज्ञानावरण कर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय होनेपर और सत्ता* में उपशम रहनेपर तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदय रहने पर क्षायोपशमिक अवाघज्ञान होता है और वीयाँतराय एवं मनःपर्ययज्ञानावरण कर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर और सचामें उपशम रहनेपर तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदय रहनेपर मनःपर्ययज्ञान होता है । इसप्रकार मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान इसप्रकार क्षायोपशमिकज्ञानके चार भेद हैं। AAAAAAFAS KOREGION
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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