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________________ अध्याय - CLAURESECRECAUSEUMCHANCHEDROOTHER अनंतानुबंधि क्रोध मान माया लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध मान | माया लोभ, संज्वलन क्रोध मान माया लोभ इसप्रकार सोलह कषाय, हास्य रति अरति शोक भया जुगुप्सा स्त्रीवेद वेद और नपुंसक वेद ये नौ नोकषाय, एवं मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व ये || तीन भेद दर्शन मोहनीयके इसप्रकार इन अट्ठाईस प्रकारके मोहनीय कोंके भेदके उपशम रहनेपर औपशमिक चारित्र होता है। सम्यक्त्वस्यादौ वचनं तत्पूर्वकत्वाच्चारित्रस्य ॥ ४॥ आत्मामें पहिले सम्यक्त्व पर्यायकी प्रकटता होती है पीछे चारित्र पर्यायका उदय होता है इसलिये | सम्यक्त्वकी प्रकटता चारित्रसे पहिले होनेके कारण सम्यक्त्वचारित्रे' इप्त सूत्र में सम्यक्त्व शब्दका प्रयोग पहिले किया गया है ॥३॥ क्षायिक भावको नौप्रकारका बतला आये हैं इसलिये सूत्रकार अब उन नौ भेदोंके नाम गिनाते हैं ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च॥४॥ केवलज्ञान केवलदर्शन क्षायिकदान क्षायिकलाभ क्षायिकभोगक्षायिकउपभोग क्षायिकवीर्य क्षायिक | सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र ये नव भेद क्षायिक ज्ञानके हैं। सूत्रमें जो च शब्दका ग्रहण किया गया | है उससे यहां पूर्वसूत्रमें कहे गये सम्यक्त्व और चारित्रका ग्रहण है। . ___ ज्ञानदर्शनावरणक्षयात्कवले क्षायिक ॥ १॥ ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मके सर्वथा नष्ट हो जानेपर जो केवलज्ञान और केवलदर्शन आत्मा में प्रगट होते हैं उन्हींका.नाम यहां क्षायिकज्ञान और क्षायिक दर्शन है। PEAREDGGLEGISTRIBUTORRUPESASURBASUR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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