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है नियमसे विशेषण होते हैं जिसतरह-नीलघट इस समस्तपदमें नील शब्द नील रूपका वाचक है और है
अध्याय घट शब्द पृथुबुध्नोदरादि आकारका वाचक है । यहां पर गुणवाचक नील शब्द विशेषण और घट 8 विशष्य है । इसीप्रकार द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यहांपर द्वि आदि शब्द विशेषण और भेद शब्द विशेष्य है। इसलिये भेद शब्दका पहिले प्रयोग नहीं हो सकता। ___इसप्रकार यह कर्मधारय समासकी अपेक्षा कथन किया गया है परंतु 'द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रयोहै भेदा येषां त इमे दिनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदाः' यह यहांपर बहुव्रीहि समास भी है । यहाँपर यह है
शंका न करनी चाहिये कि विशष्य विशेषणोंमें विशेषणका प्रयोग पहिले होता है इसलिये इस बहुव्रीहि । १ समासमें जब भेद शब्द विशेषण और द्वि आदि शब्द विशेष्य हैं तब भेद शब्दका पहिले प्रयोग |
क्यों नहीं किया गया ? क्योंकि 'सर्वनामसंख्ययोरुपसंख्यान' अर्थात् सर्वनाम संज्ञावाचक और संख्याहूँ वाचक जितने भी शब्द हैं (वहुव्रीहि समासमें) उनका प्रयोग पहिले ही होता है, यह व्याकरणका हूँ
सिद्धांत है । इसलिये द्विनवाष्टादशेत्यादि स्थलपर द्वि आदि शब्द संख्यावाचक होनेसे उन्हींका पूर्वनिपात हो सकता है, भेद शब्दका नहीं। . यहांपर यह वात ध्यानमें रखनी चाहिये कि दिनवाष्टादशेकविंशतित्रय एव भेदाः, द्विनवाष्टाद.
शैकविंशतित्रिभेदाः, यह कर्मधारय समास कहा जाय तब प्रथमा विभक्तिकी जगह षष्ठीविभक्तिका हूँ विपरिणमन कर औपशमिकादीनां ऐसी पूर्व सूत्रसे इस सूत्रमें अनुवृत्ति कर लेनी चाहिये और औप. ९ शमिक आदि भावोंके दो नव आदि भेद होते हैं यह अर्थ समझ लेना चाहिये । तथाजिससमय वहुव्रीहि समास माना जाय उससमय सूत्रमें जैसा निर्देश है वैसा ही उचित है और ऊपर जो बहुव्रीहि समासके ५२२ आधीन अर्थ लिखा गया है वही ठीक है।
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