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15|| दयस्तु कदाचित्संख्यानप्रधानाः कदाचिसंख्येयप्रधाना इति अर्थात् एक द्वि आदिको ले कर एकोनविं
अध्याय |६शति (उन्नीस ) पर्यंत शब्द संख्येयप्रधान हैं और विंशति आदि शब्द कभी संख्यानप्रधान हो जाते हैं।
और कभी संख्येयप्रधान भी हो जाते हैं। इस वचनसे द्वि आदि शब्दोंको संख्यानप्रधान नहीं माना गया । यदि यहां पर यह कहा जाय कि
दि आदि शब्दोंको यद्यपि व्याकरण शास्रके अनुसार संख्यानप्रधान नहीं माना जा सकता | तथापि यदि युक्तिबलसे संख्यानप्रधान मान भी लीया जाय तो वे विंशति आदि शब्दोंके समान हो | || सकते हैं कोई दोष नहीं सो भी अयुक्त है। क्योंकि द्वि आदि और विंशति आदिको यदि समान मान लिया | 18 जायगा तो संबंधी शब्दोंके साथ विंशति आदि शब्दोंका प्रयोग करने पर जो विभाक्त होती है वही || || विभक्ति द्वि आदि शब्दोंके साथ प्रयोग करने पर भी होगी और द्वि संख्याको स्वतः एकपना माना है ||६]
रण एक वचन ही आवेगा जिसतरह 'विंशतिर्गवा' अर्थात वीस बाल गाय , यहांपर सख्यानवाचक विंशति शब्दसे एकवचन प्रथमा विभक्तिका विधान है और उसका संबंधी | जो गोशब्द है उससे बहुवचन षष्ठी विभक्तिका विधान है। उसीप्रकार दि आदि शब्दोंसे मानना पडेगा।
तब 'विंशतिर्गवां' जैसा यह प्रयोग है उसी प्रकार 'पद् गवा' वा 'चत्वारी गां' इत्यादि प्रयोग भी शुद्ध मा मानने पडेंगे इसलिये द्वि नव आदि शब्दोंको संख्यानप्रधान नहीं माना जा सकता इसरीति से जब द्वि | ||६|| आदि शब्द संख्यावाचक नहीं सिद्ध हो सकते तब तुल्य योगके अभावसे उपर्युक्त इतरेतर द्वंद्व अयक्त है। यदि यहाँपर यह कहा जाय कि
||५१५ यद्यपि व्याकरण शास्रके अनुसार द्वि आदिको संख्यावाचक मानना ऊपर विरुद्ध वताया गया है
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