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________________ भाषा KOREAUMORORSASSISTACEACHES दाह परिणाम अग्निका ही है इसलिये जिससमय वह लकडीको जलाती है उस समय जलनारूप है क्रियाकी वह कर्ता है तथा वह अपने ही दाह परिणामसे जलाती है इसलिये वही करण है उसीप्रकार पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा ज्ञान पर्यायसे आत्मा भिन्न है परन्तु वह परिणाम आत्माका ही है इसलिये जिससमय आत्मा पदार्थों को जानता है उस समय जानना क्रियाका कर्ता आत्मा ही है तथा वह अपने ही ज्ञान गुणसे जानता है इसलिये वही करण है । यदि ज्ञानको आत्माका स्वभाव न माना जायगा तो जिसप्रकार दाह स्वभावके विनाग्निका निश्चय नहीं हो सकताउसीप्रकार ज्ञान स्वभावके विना आत्माका है भी निश्चय न हो सकेगा इत्यादि भाव दहन स्वभावकी अपेक्षा समझना चाहिये। और भी यहवात है कि अनेकांतात्पर्यायपर्यायिणोरथांतरभावस्य घटादिवत् ॥ २१॥ मूल भेद नयों के द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दो हैं । जिस नयसे पर्यायकी गौणता रखते हुए ॐ द्रव्यका प्रधान रूपसे बोध हो वह द्रव्यार्थिक है और द्रव्यकी गौणरूप अपेक्षा रख कर पर्यायोंका ६ जाननेवाला नय पर्यायार्थिक है। घटका अर्थ मिट्टीका घडा और जिन दोनों पलडोंमें घडा रहता है हूँ अर्थात् घडेको फोडनेसे या घडेको तयार करनेमें जो समान रूप घडेके दो भाग हिस्से होते हैं उन्हें ही है कपाल कहते हैं। जिस समय घट और कपालमें पर्यायार्थिक नयकी ओर ध्यान न देकर द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा रक्खी जाती है उस समय यह घडा है वा यह कपाल है, इसतरह पर्यायोंकी विवक्षाकहनेकी इच्छा नहीं रहती किन्तु मिट्टी द्रव्य वा अंजीव द्रव्य वा अनुपयोग (ज्ञानदर्शनस्वरूप उप-है १ घट कपाल प्रादि अजीव द्रश्के पर्याय हैं इसलिये उनका द्रव्य अजीब है । २ ज्ञानदर्शनस्वरूप उपयोगरहित घट द्रव्यके है ३१ कपालादि पर्याय हैं इसलिये उनका द्रव्य अनुपयोग भी है। 90SASARBASNA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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