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________________ AEDGE % भाषा १६७ SABRASSASSA - जिसप्रकार सूतका गिरना सरल होता है उसीप्रकार जो सरल विषयको सूचित करता है उसका नाम ऋजुसूत्र है। यह नय त्रिकालसंबंधी विषयोंको छोडकर वर्तमानकालीन विषयोंको ग्रहण करता है क्योंकि जो पर्याय बीत चुकी अथवा जो पर्याय अभी तयार नहीं-आगे जाकर तयार होगी उन दोनों पर्यायोंसे व्यवहार चल नहीं सकता इसलिये शुद्ध एक समयमात्र ही ऋजुसूत्र नयका विषय माना गया है। ....'कषायो भैषज्यं काढा दवा है' यहाँपर जिन पदार्थों का काढा है उन पदार्थोंका अर्क निकलकर | जिससमय साक्षात् औषधस्वरूप काढा बन जाता है वही शुद्ध वर्तमानकालीन एक समयवर्ती ऋजुसूत्र नयका विषय है किंतु पहिले ही पहिले जिसका रस अभीतक प्रगट नहीं हुआ-आगे जाकर प्रगट | होनेवाली है इसीलिये जो साक्षात् औषध नहीं है वह ऋजुसूत्र नयका विषय नहीं । क्योंकि वह वर्तमान | एक समयवर्ती नहीं-भविष्यत् कालकी अपेक्षा रखता है । तथा पच्यमान-जो पक रहा है और पक-जो पक चुका है यह ऋजुसूत्र नयका विषय है। यहां पच्यमान और पकका अर्थ कथंचित् पच्यमान और कथंचित् पक्क यह समझ लेना चाहिये यदि यहां पर यह शंका की जाय कि पच्यमान यह वर्तमान पर्याय और पक्क यह अतीत पर्याय है, दोनोंका एक जगह | कैसे समावेश होगा ? सो ठीक नहीं। क्योंकि यहां पर उत्तर देते समय यह कहा जा सकता है कि | पहिले ही पहिले जबकि समयका कोई विभाग नहीं है उससमय भातका कुछ अंश पका-सीझा. है या नहीं! यदि नहीं सीझा है तब-द्वितीयादि समयोंमें भी वह नहीं सीझ सकता इसलिये पाकका अभाव | ही कहना होगा। परंतु प्रतिक्षणं वह सीझता अवश्य है इसलिये वटलोईमें रखे हुए चावलोंमें सीश - ROPERIERLER
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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