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________________ ० ৬ল नयोंके सामान्य और विशेष दोनों प्रकारके लक्षण बतलाना परमावश्यक है । उनमें सामान्य लक्षण इसप्रकार है प्रमाणप्रकाशितोऽर्थविशेषप्ररूपको नयः ॥ १ ॥ प्रकृष्ट, मान - ज्ञान को प्रमाण कहते हैं । वह एक धर्म के द्वारा पदार्थ के समस्त धर्मोंको जान लेता है। इसलिये सकलको जानने के कारण उसका अर्थ संकलादेश है । प्रमाणके द्वारा प्रकाशित, अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनित्यत्व आदि अनंत धर्मस्वरूप जीव अजीव आदि पदार्थों के पर्यायों का जो विशेष रूप से निरूपण करनेवाला है उसको नय कहते हैं । प्रमाणप्रकाशितोऽर्थेत्यादि नयके लक्षण में जो 'प्रमा प्रकाशित' पदका उल्लेख है उसका यह तात्पर्य है कि जो पदार्थ प्रमाण के द्वारा प्रकाशित है उन्हीं के पर्यायोंका विशेषरूप से प्ररूपण करनेवाला नय है किंतु जिन पदार्थोंका प्रकाश प्रमाणाभास से है उनके पर्यायोंका विशेषरूप से प्रकाशक नय नहीं । तथा उक्त नयके लक्षण में रूपक शब्दकी जगह जो प्ररूपक १ एकधर्मबोधनमुखेन तदात्मकाने का शेषधर्मात्मक वस्तु विषयक बोधजनकवाक्यत्वं सकलादेशः । वस्तुके किसी एक धर्मके जान लेनेसे उसके द्वारा शेष अनेक धर्मस्वरूप वस्तुको सकलतासे जान लेना सकल देश है। सप्तमंगीतरंगिणी पृष्ठ १६ । अन्यत्र भी सकलादेशका यह लक्षण किया गया है- 'एकगुणमुखेन शेषवस्तुरूप संग्रहात्स कलादेशः' अर्थात् वस्तुके एक धर्म के द्वारा उस वस्तुमें रहनेवाले शेष समस्त धर्मोका ग्रहण-जान लेना सफलादेश है। एक धर्मके उल्लेख से वस्तु के समस्त धर्मोका जो ज्ञान होता है उसमें श्रभेदवृत्ति और अमेदोपचार कारण है वहां पर द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा अभेदवृत्ति है क्योंकि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा कोई धर्म जुदा नहीं सब द्रव्यस्वरूप हैं और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा अभेदोपचार है क्योंकि पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा परस्पर धर्मोका भेद रहने पर भी वहां एकत्वका भारोप है। अयान श्र
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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