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________________ A बारा माषा ११३ APASABALREASEABRAHATABASS || प्रवृत्ति हो नहीं सकती इसलिये सव द्रव्योंको मतिज्ञान जानता है यह कहना ठीक नहीं ? उत्तर-धर्माः |. स्तिकाय आदि पदार्थोंके ज्ञानमें कारण मन है श्रुतज्ञनावरण कर्मकी. क्षयोपशम -लब्धिरूप- विशुद्धिके रहने पर उससे धर्मास्तिकाय आदि अतींद्रिय पदार्थोंका अवग्रह ईहा आदि स्वरूप उपयोग पहिले हो | लेता है उसके बाद अपने योग्य धर्मास्तिकाय आदि अतींद्रिय विषयों में श्रुतज्ञानकी प्रवृचि होती है। इसलिये धर्मास्तिकाय आदि अतींद्रिय पदार्थों का ज्ञान जब मनसे होता है तब यह मतिज्ञान ही है । क्योंकि मनसे भी मतिज्ञान माना है ॥२६॥ .. मतिज्ञान और श्रुतज्ञानके विषयका निरूपण कर दिया गया उनके अनंतर नामधारी अवधिज्ञान | के विषयका निरूपण सूत्रकार करते हैं ___ रूपिष्ववधेः॥२७॥ अवधिज्ञानके विषयका नियम रूपी पदार्थों में है अर्थात् वह पुद्गल द्रव्यकी पर्यायोंको ही जानता है। रूपशब्दस्यानेकार्थत्वे सामर्थ्याच्छुक्लादिग्रहणं ॥१॥ रूप शब्दके वाच्य अर्थ अनेक हैं। 'रूपरसगंधस्पर्शा इति' रूप रस गंध और स्पर्श, यहाँपर रूप शब्द सफेद आदि रंगका वाचक है। 'अनंतरूपमनंतस्वभावमिति' अनंत रूपका धारक है अर्थात् । अनंत स्वभाववाला है, यहांपर रूपका अर्थ स्वभाव है परन्तु यहांपर नेत्र इंद्रियके विषयभूत शुक्ल आदि | का ही ग्रहण है। किंतु यहॉपर उसका स्वभाव अर्थ नहीं लिया जा सकता क्योंकि स्वभाववाले धर्मास्ति | पदाथे स्वभावसे विहीन नहीं। इसलिये धर्मास्तिकाय आदि अरूपी ||२||४१३ पदार्थोंका भी ज्ञान अवधिज्ञानसे कहना पडेगा। परन्तु अवधिज्ञानसे सिवा पुद्गल द्रव्यके अन्य अमू विकिमि RAS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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