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ए उस द्रव्य प्रमाण अनंत प्रदेशोंके धारक असंख्यात स्कंधोंको सर्व जघन्य देशावाधिज्ञान जानता है तथा 19 जितने प्रमाण स्कंधोंको देशावधि विषय करता है उन स्कंधोंमें रहनेवाले अनंते रूप रस गंध आदि
* उसका भाव विषय है। इतने प्रमाण भावमें सर्व जघन्य देशावधि ज्ञानकी प्रवृचि है। देशावधि ज्ञानकी प्रवृचिका वर्णन इस प्रकार है
देशावधिके एक प्रदेश अधिक क्षेत्रकी वृद्धि एक जीवकी अपेक्षा नहीं है किंतु नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वलोकपर्यंत एक प्रदेश अधिक क्षेत्रकी वृद्धि है । एक जीवकी अपेक्षा तो विशुद्धता होने पर मंडूकप्लुति न्यायसे सर्व लोकपर्यंत अंगुलके असंख्यातवें भागसे ऊपर एक दम अंगुलके असंख्यात भाग क्षेत्र वृद्धि मानी है तथा नाना जीवोंकी अपेक्षा जो एक प्रदेश अधिक क्षेत्र वृद्धि मानी है वह वहीं
तक ही होती है जब तक कि अंगुलका असंख्यातवां भाग समाप्त नहीं होता । उसके आगे नहीं होती। रु एक जीव वा नाना जीवोंकी अपेक्षा देशांवधिको काल वृद्धि भी जब तक आवलीका असंख्यातवां भाग हूँ पूरा-न हो तब तक मूल आवलीके असंख्यातवें भागसे कहीं एक समय अधिक, कहीं दो समय अधिक, हूँ है कहीं संख्यात समय अधिक, और कहीं असंख्यात समय अधिक मानी है। किंतु आवलीके असंख्यातवें है है. भागसे ऊपर देशावधिकी काल वृद्धि नहीं मानी तो इसप्रकारको क्षेत्र वृद्धि और काल वृद्धि किस
प्रकारकी वृद्धिसे होती है ? उचर-चार प्रकारकी वृद्धिसे-संख्यातभाग वृद्धि १ असंख्यातभाग वृद्धि २ संख्यातगुण वृद्धि ३ असंख्यातंगुण वृद्धि ४ इन चार प्रकारकी वृद्धियोंसे ली गई है तथा
१-जिसतरह मैरक कूद कर चलता है क्रम क्रमसे नहीं जाता उसी प्रकार एक जीवकी अपेक्षा जो क्षेत्र वृदि मानी है वह एक दम अंगुलके असंख्यात मागसे अंगुबके असंख्यात माग मानी है एक प्रदेश दो प्रदेव आदि क्रमसे नहीं मानी ।
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