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अध्याप
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आधिक रूपसे वा उत्कृष्ट और जघन्य रूपसे होता है यह ऊपर कहा जा चुका है उसका विस्तृत वर्णन इस [3] प्रकार है--भवनवासी व्यंतर ज्योतिषी और वैमानिक ये देवोंके चार भेद हैं उनमें दर्शप्रकारके भवनवासियोंके जघन्य अवधि ज्ञानका विषय पच्चीस योजन प्रमाण है अर्थात् जघन्य अवधि ज्ञानके धारक दशों प्रकारके भवनवासी अवधिज्ञानसे पच्चीस योजनसे अधिक नहीं जान सकते । भवनवासी निकायके हूँ भेद असुरकुमार देवोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका विषय नीचेकी ओर असंख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण है और ऊपरकी ओर ऋजुविमानकी चोटी तक है । नागकुमार आदि नौ प्रकारके भवनवासियोंके है उत्कृष्ट अवधिज्ञानका विषय नीचेकी ओर असंख्यात हजार योजन प्रमाण है। ऊपरकी ओर मेरु पर्वतकी चोटी तक है और तिरछा असंख्यात हजार योजन प्रमाण है। _किंनर किंपुरुष महोरग गंधर्व यक्ष राक्षस भूत और पिशाचके भेदसे व्यंतर आठ प्रकारके ५, हैं। आठों ही प्रकारके व्यंतरोंका जघन्य अवधिका विषय पच्चीस योजन प्रमाण है । तथा उत्कृष्ट नीचेकी
ओर असंख्यात हजार योजन है ऊपरकी और अपने अपने विमानोंकी चोटी तक है और तिरछा
असंख्यात कोडा कोडी योजन है। ज्योतिषी देवोंका जघन्य अवधिज्ञान नीचे संख्यात योजन प्रमाण है है उत्कृष्ट-असंख्यात हजार योजन प्रमाण है। ऊपर अपने विमानकी चोटी तक है। तिरछा असंख्यात
कोडाकोडी.योजन प्रमाण है। .
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१-भवनवासिनोऽसुरनागविद्युस्सुपर्णाग्निवातस्तनिठोदधिद्वीपदिक्कमागः । असुरकुमार १ नागकुमार २ विद्युत्कुमार ३ सुपकुपार ४ अग्निकुमार ५ वातकुमार ६ स्तनितकुमार ७ उदधिकुमार द्वीपकुमार ९ और दिक्कुमार १० ये दश प्रकारके भवनवासी देव हे तत्वाथे सूत्र अ०४०१०।२-प्रथम सौधर्मस्वर्गका विमान ।
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