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________________ अध्याय FSA-SARLSCLASASARDARDWARENESCREERSotes * अवधिज्ञानकी उत्पचिमें भी अंतरंग कारण क्षयोपशम है । वह जैसा जैसा तीव्र मंदभावसे रहता है वैसा है वैसा कम अधिक अवधिज्ञान होता है। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि जब भवनिमिचक अवधिज्ञानमें भी काँका क्षयोपशम ही कारण है तब उसकी उत्पत्ति में भवको कारण मानना व्यर्थ है ? सोई ६ ठीक नहीं। जिसतरह तिर्यंच और मनुष्योंके अवधिज्ञानमें अहिंसादिक व्रत नियम कारण हैं उसीप्रकार ६ देव और नारकियोंके अवधिज्ञानमें अहिंसादिक व्रत नियम कारण नहीं किंतु देवगति और नरकगतिमें हूँ उत्पन्न होनेके साथ ही आपसे आप वहां अवधिज्ञानकी उत्पचिके अनुकूल कर्मोंका क्षयोपशम हो जाता है है इसलिये वहां पर जो अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उसमें वाह्य कारण भव ही है। शंका अविशेषात सर्वप्रसंग इति चेन्न सम्यगधिकारात ॥५॥ ____भवकारणक अवधि देव और नारकियोंके होता है यह सामान्य कथन है । देवगति और नरक गतिमें सम्यग्दृष्टिं और मिथ्यादृष्टि दोनों प्रकारके नारकी रहते हैं इसलिए मिथ्यादृष्टियोंके भी अवधि ॐ ज्ञानका विधान सिद्ध होनेसे उनके भी अवधिज्ञान कहना होगा ? क्योंकि भव दोनोंके समान कारण 8 ६ उपस्थित है। सो नहीं। भवप्रत्ययोवधिरित्यादि सूत्र के लिए सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानका अधिकार हूँ हूँ है क्योंकि पांचों सम्यग्ज्ञानोंका ही विवेचन क्रमसे किया जा रहा है वह भी मोक्ष मार्ग प्रकरण होनेसे हूँ सिद्ध है इसलिए सम्यग्दृष्टी देव नारकियों के ही अवधिज्ञान हो सकता है मिथ्यादृष्टिके नहीं, उनके है ९ विभंग होता है । अथवा इसी अध्यायमें आगे "मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च" मति श्रुत और अवधिज्ञान है * ये विपरीत ज्ञान भी होते हैं, यह कहा गया है उस संबंधसे सिद्ध होता है कि सम्यग्दृष्टी देवों के ही ३७८ 3 अवधिज्ञान होता है मिथ्याष्ठियोंके अवधिज्ञान नहीं होता किंतु विभंगावधिज्ञान ही होता है। अथवा REGRESREEGREENSARG FASNA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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