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________________ एस * मिल जाते हैं उसीके समान द्रव्यस्वभावसे देहमें स्थित आत्मप्रदेशोंका जो वाहर निकलना और आकर हैं फिर मिल जाना है उसका नाम केवलिसमुद्घात है। - . आहारक शरीर श्रेणि-दिशामें ही गमन करता है विदिशामें नहीं तथा जिस क्षेत्रमें केवली विराजमान रहते हैं उसी क्षेत्रमें जाता है अन्य क्षेत्रमें नहीं इसलिये जिमसमय आत्मा आहारक शरीरकी | रचनामें प्रवृत्त होता है उससमय एक ही दिशामें असंख्याते आत्माके प्रदेशोंको बाहर निकाल वह एक हाथ प्रमाण आहारक शरीरकी रचना करता है। अन्य क्षेत्रमें जानेकेलिये आहारक समुद्घातकी रच-15 नाकी कोई आवश्यकता नहीं इसलिये जिस दिशामें केवली विराजमान रहते हैं उसी दिशामें जानेके 8 कारण उसका गमन एक ही दिशामें होता है तथा मरणके अंतमें जो जीवका गमन होता है वह भी हूँ दिशामें ही होता है इसलिये मरणके अंत समयमें नरक आदि गतियों में जहां जीवको जन्म लेना होता है है उसी क्षेत्रमें मारणांतिक समुद्धात द्वारा आत्माके प्रदेश उसी दिशा और क्षेत्रमें गमन करते हैं विदिशा वा अन्य क्षेत्रमें गमन नहीं करते इसलिये जहॉपर जन्म लेना निर्धारित हो चुका है उसी दिशा वा क्षेत्र || १ में मारणांतिक समुद्धातका गमन भी एक ही दिशा में होता है इसरीतिप्ते आहारक और मारणांतिक 18 इन दोनों समुद्धातोंका तो एक ही दिशामें गमन होता है इसलिये ये दोनों समुद्धात एकदिक हैं और बाकीके पांच समुद्धातोंका छहौ दिशाओंमें गमन होता है क्योंकि वेदना कषाय आदि समुद्धातोंके १। माहारमारणतिय दुर्ग पि णियमेण एगदिसिगं तु । दसदिसिगदा हु सेसा पंचसमुग्पादया होति ॥ ६६८॥ उक्त सात प्रकारके समुद्घातोमेंसे भाहार और मारणांतिक ये दो समुद्घात तो एक ही दिशामें गमन करते हैं किंतु वाकीके पांच समुद्घात दशों दिशाओंमें गमन करते हैं। B REALOREGAGAGRECASI ४७
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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