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अध्याय
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६ सात भागोंमें एक भाग है । और सातवीं पृथिवीके अंतसे एक राजू नीचे जा कर कलंकल पृथिवीके ऐ नीच लोकके अंत तक चौडाई सात राजू है।
बब्रतल-लोकके मध्य भागसे, एक राजू ऊपर जाने पर लोककी चौडाई दो राजू और एक राजूके " सात भागोंमें एक भाग है । वहाँसे आगे एक राजू ऊपर जाने पर तीन राजू और एक राजूके सात 2 भागोंमें दो भाग है । उसके एक राजू ऊपर जाने पर चार राजू और एक राजूके सात भागों में तीन भाग ६ है। वहांसे आगे आधा राजू ऊपर जाने पर पांच राजू वहांसे आगे आधा राजू और ऊपर जाने पर छ चार राजू और एक राजूके सात भागोंमें तीन भाग है। वहांसे आगे फिर एकराजू ऊपर जाने पर तीन हूँ राजू और एक राजूके सात भागोंमें दो भाग हैं। उसके आगे एक राजू ऊपर जाने पर दो राजू और टू हूँ एक राजूके सात भागोंमें एक भाग चौडाई है और वहांसे आगे फिर एक राजू ऊपर जाने पर है से लोकके अंतमें लोककी चौडाई केवल एक राजू है। यह अलोकाकाशकी अपेक्षा राजुओंका विधान है।
सम् और उत् उपसर्गपूर्वक हन धातुसे भाव अर्थमें घञ् प्रत्यय करने पर समुद्धात शब्द बना है। । हन् धातुका अर्थ यहां गमन करना लिया गया है इसलिये 'मिलकर आत्माके प्रदेशोंका जो वाहिर निकलना है वह समुद्धात है' यह समुद्धात शब्दका अर्थ है । और वह वेदना.१ कषाय २ वैक्रियिक ३ १। वैयणकसायवेगुम्वियो य मरणंतिओ समुग्धादो। तेजाहारो छछो सचमओ केवलीणं तु ॥ ६६६ ॥
मूलशरीरमछंडिय उत्तरदेडस्स जीवपिंडस्स । णिग्गमणं देहादो होदि समुग्धादणामं तु ॥६६७ ॥ जीवकांड । वेदना कषाय आदि सात प्रकारका समुद्घात है। मूल शरीरको न छोडकर तैजस कार्माण रूप उत्तर देहके साथ साथ जीव प्रदेशोंके शरीरसे बाहर निकलनेको समुद्घात कहते हैं।
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