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भाषा
६ यंत आदि अनुचर विमानों में जन्म धारण किया है इसीतरह ऋषभ आदि तेईस तीर्थंकरों के तीर्थों में भी ||४|| ६ दश दश मुनियों को भी दश प्रकारके घोर उपसर्ग सहकर विजय आदि विमानोंमें जन्म धारण करने || वाला समझ लेना चाहिये । अथवा विजयादि अनुचर विमानोंमें उपपाद जन्मके धारक जीवोंकी व्यव- |३| | स्थाका जिसमें वर्णन हो वह भी अनुचरोपादिक दश कहा जाता है इसीलिये इस अनुत्तरोपपादिक | दशांगमें अनुत्तरवासी देवोंके आयुविक्रिया आदिका वर्णन है । जिनका जन्म उपपाद है वे औपपादिक कहे जाते हैं। अनुत्तर शब्दसे विजय वैजयंत जयंत अपराजित और सर्वार्थसिद्धिइन पांच विमानोंका ग्रहण
है जो जीव इन अनुत्तर विमानोंमें उपपाद जन्मसे उत्पन्न होनेवाले हैं वे अनुचरौपपादिक कहे जाते हैं | || यह अनुत्तरौपपादिक शब्दका व्युत्पचिसिद्ध अर्थ है। इस अंगमें पदोंका प्रमाण बानवै लाख चवालीस ६ हजार है। प्रश्न व्याकरण अंगमें हेतु और नयोंके आश्रित प्रश्नोंका खंडन मंडन द्वारा विचार करनेका
वर्णन है तथा लौकिक और शास्त्रसंबंधी दोनों प्रकारके पदार्थों का भी वर्णन है अर्थात्-दूतवचन नष्ट मुष्टि | चिंता आदि अनेक प्रकारके प्रश्नों के अनुसार तीन कालसंबंधी धन धान्य आदिका लाभालाभ सुख दुःख जीवन मरण जय पराजय आदि फलका वर्णन है और प्रश्नके अनुसार आक्षेपिणी (जिस कथामें पक्षका स्थापन है) विक्षेपिणी (जिसमें खंडन हो) संवेदिनी (जिसमें यथावत् पक्ष आदिका ज्ञान हो) और ॥
निर्वेदिनी (जिसमें संसारसे भय हो) ऐसी चार कथाओंका वर्णन है । इसके पदोंका प्रमाण तिरानवे 1 लाख सोलह हजार है । विपाकसूत्र अंगमें द्रव्य क्षेत्र काल भावके अनुसार शुभ और अशुभ कर्मोंकी 5 तीव्र मंद मध्यम आदि अनेक प्रकारकी अनुभाग-फल देनेकी शक्तिरूप विपाकका वर्णन है । इसमें 5 ३५७
पदोंका प्रमाण एक करोड चौरासी लाख हैं। बारहवां अंग दृष्टिवाद है इसमें तीनसोक्रेसठि मिथ्याष्टि
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