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पर पहिले बीज पीछे अंकुर हुआ है इसलिए बीज और अंकुरमें जिस प्रकार संतान की अपेक्षा अनादि निधनपना है और व्यक्ति विशेषकी अपेक्षा सादि सांतपना है उसी प्रकार जहां पर द्रव्य क्षेत्र काल और भावकी भिन्न भिन्न विवक्षा न कर सामान्य रूपसे विवक्षा है वहांपर तो श्रुतज्ञान अनादि निधन है क्योंकि किसी पुरुषने कभी किसी कालमें किसी प्रकारसे श्रुतका निर्माण नहीं किया किंतु जिस समय अमुक द्रव्यसे अमुक क्षेत्र में अमुक कालमें अमुक भावसे श्रुतका निर्माण किया गया है, इस तरह की जहाँपर द्रव्य क्षेत्र आदिको विशेष विवक्षा है वहां श्रुत सादि सांत है इस रीति से कथंचित् सामान्यकी अपेक्षा श्रुत अनादि अनंत है और कथंचित्-विशेषकी अपेक्षा सादि सांत है इसलिए 'अनादिनिधनं श्रुतं' यह वचन अनेकांत वादकी अपेक्षा कभी बाधित वा मिथ्या नहीं कहा जा सकता । तथा सादि सांत पक्षमें पुरुषकृत होनेसे जो श्रुतको अप्रमाणिक ठहराया है वह भी ठीक नहीं । क्योंकि चोरी के उपदेश के कर्ताका किसीको स्मरण नहीं है अर्थात् चोरीका उपदेश किसने दिया इसका कोई निश्चय नहीं जिससे वह पुरुषकृत माना जाय वहां उस चोरी आदिके उपदेश को भी प्रामाणिक मानना पडेगा क्योंकि वहां पर भी पुरुषकी कृति का निश्चय नहीं है । तथा यह भी बात है कि सादि सांत कहने से श्रुतको अनित्यपना सिद्ध होता है इसीसे उसे अप्रमाणिक सिद्ध करनेके लिये यत्न किया जाता है परंतु अनित्य पदार्थ सब अप्रमाणिक ही होते हैं, यह बात नहीं क्योंकि प्रत्यक्ष आदि भी अनित्य पदार्थ हैं । यदि अनित्य पदार्थोंको अप्रामाणिक माना जायगा तो प्रत्यक्ष अनुमान आदिको भी अप्रामाणिक मानना पडेगा परंतु उन्हें अप्रामाणिक नहीं माना गया अन्यथा संसारके पदार्थों की व्यवस्था ही न हो सकेगी इसलिए सादि सांत होनेसे श्रुतको अप्रामाणिकपना नहीं हो सकता । इस रीति से