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________________ त०रा० भाषा ३४६ मतिपूर्वकत्वे श्रुतस्य तदात्मकत्वप्रसंगो घटवत्, अतदात्मकत्वे वा तत्पूर्वकत्वाभावः ॥ ३॥ न वा निमित्तमात्रत्वाद्दंडवत् ॥ ४ ॥ जो गुण कारणमें होते हैं वे कार्यमें आते हैं जिसतरह जो घट मिट्टी से बनाया जाता है वह अपने घट कार्यकालमें भी मिट्टीस्वरूप ही रहता है । यदि मतिज्ञानको श्रुतज्ञानका कारण माना जायगा तो उसे मतिज्ञानस्वरूप ही कहना पडेगा । यदि श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति में उसे कारण नहीं माना जायगा तो 'मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होता है' यह बात ही न बन सकेगी । इसलिये मतिज्ञान श्रुतज्ञानका कारण नहीं हो सकता। सो ठीक नहीं। जिसतरह घटकी उत्पत्तिमें दंड आदि निमित्त कारण हैं और " निमित्त कारण गुण कार्य में आते नहीं" यह प्रत्यक्ष सिद्ध है इसलिये दंड आदि निमित्त कारणों के गुण घटमें आते नहीं दीख पडते उसी प्रकार श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति में मतिज्ञान निमित्त कारण है और निमित्त कारण होने से मतिज्ञानके गुण श्रुतज्ञानमें नहीं आ सकते । इसका खुलासा इसप्रकार है मिट्टी जिससमय घटस्वरूप परिणामके अभिमुख होती है । घटस्वरूप उसका परिणाम होता है उससमय उसके उस रूप में परिणत होनेमें दंड चाक और पुरुषका प्रयत्न आदि निमित्त कारण होते हैं क्योंकि बालू आदिके ढेरस्वरूप मिट्टी के पिंडको यदि घटस्वरूप परिणत न किया जाय तो दंड आदि निमित्त विद्यमान रहते भी घट नहीं उत्पन्न हो सकता इसलिये जिसप्रकार स्वयं मिट्टी ही अंतरंग में घट रूप पर्याय अभिमुख होने पर वाह्य दंड आदि निमित्त कारणोंकी सहायता से घट बन जाती है । दंड आदि घट नहीं बनते इसलिये वे घटकी उत्पत्ति में निमित्त कारण माने जाते हैं उसीप्रकार पर्यायी आत्मा और पर्याय ज्ञानादिकी कथंचित् भेद विवक्षा रहने पर जिससमय आत्मा स्वयं अंतरंग में श्रुत अध्याय १ ३४६
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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