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________________ ABOUS मतिज्ञानी पुरुषको यदि उपदेश द्वारा समझाया जाय तो वह मतिज्ञानसे समस्त द्रव्य और उनकी १०रा० कुछ पर्यायोंको जान सकता है समस्त पर्यायोंको नहीं। यदि उसे क्षेत्र संबंधी उपदेश दिया जाय तो वह नया | उपदेशसे समस्त क्षेत्रों को जान सकता है। यहांपर क्षेत्रका अर्थ विषय भी है इसलिये जिससे इंद्रियोंकी ३४३ ||२|| अपेक्षा विचार किया जायगा उससमय चक्षुका क्षेत्र सैंतालिस हजार दोसौ त्रेसठि योजन और एक 13 योजनके मातिभागोंमसे हक्कीस भाग प्रमाण है अर्थात अधिकसे अधिक चक्ष इतनी दर तक देख.॥४ योजनके साठि भागों से इक्कीस भाग प्रमाण है अर्थात् आधि | सकता है उससे अधिक नहीं । कर्ण इंद्रियका क्षेत्र बारह योजन है एवं नासिका जिह्वा और स्पर्शन 8 | इंद्रियका नौ नौ योजन है । यदि मतिज्ञानीको काल संबंधी उपदेश दिया जाय तो वह समस्त कालको ||3|| जान सकता है और यदि भावसंबंधी उपदेश दिया जाय तो वह जीव अजीव आदिके औदयिक आदि भावों को जान सकता है। ___सामान्य रूपसे तो मतिज्ञान एक प्रकारका है। इंद्रिय और अनिद्रियके भेदसे दो प्रकारका है। अवग्रह ईहा अवाय और धारणाके भेदसे चार प्रकारका है । अवग्रह आदि चारो भेदोंका यदि इंद्रियों के 5 साथ गुणा किया जाय तो वह चौबीस प्रकारका है । व्यंजनावग्रह चार इंद्रियोंसे होता है यदि चौबीस भेदोंमें चार प्रकारका व्यंजनावग्रह मिला दिया जाय तो उसके अट्ठाईस भेद हो जाते हैं। इन्ही अट्टाईस भेदोंमें यदि अवग्रह आदि चार मूल भेद वा द्रव्य क्षेत्र काल और भाव ये चार मिला दिये जाय तो मतिज्ञानके बत्तीस भेद हो जाते हैं। मतिज्ञानके चौबीस भेदोंका यदि बहु आदि छैके साथ गुणा कियाई | जाय तो एकसौ चालिस उसके भेद हो जाते हैं । यदि अट्ठाईस भेदोंका बहु आदि छैके साथ गुणा || किया जाय तो एकसौ अडसठि और बचीस भेदोंका बहु आदि छैके साथ गुणा किया जाय तो एकसौ CAUSEUMSHREEGAORAREGAROCESSIRA SREACHECREGISGSEBECAUSEOCEDEOGGEOGIST
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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