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________________ अध्याय चक्षु इंद्रियावरण और वीयांतराय कर्मके तीव्र क्षयोपशमसे और अंगोपांग नामके नामकर्मके वलसै परिणत आत्मा जिस समय शुक्ल कृष्ण नील आदि शब्दोंको ग्रहण करता है उस समय उसके बहु पदार्थका अवग्रह कहा जाता है और जिस समय उक्त कारणोंकी मंदता रहती है उस समय आत्मा शुक्ल आदिमें थोडोंको ग्रहण करता है इसलिये उस समय उसके अल्प पदार्थों का अवग्रह कहा जाता है। चक्षु इंद्रियावरण और वीयांतराय कर्मके तीव्र क्षयोपशमसे और अंगोपांग नामके नाम कर्मके टू बलसे जिस समय आत्मा शुक्ल कृष्ण आदिके एक दो तीन चार संख्यात असंख्यात और अनंत भेद प्रभेदोंको ग्रहण करता है उस समय उसके बहुविध-बहुत प्रकारके पदार्थों का अवग्रह कहा जाता है और जिस समय उक्त कारणोंकी मंदता रहती है उस समय शुक्ल कृष्ण आदिमें एकविघ-एक प्रकार को ग्रहण करता है उससमय उसके एक प्रकारके पदार्थका अवग्रह होता है। __ चक्षु इंद्रियावरण और वीयांतराय कर्मके तीव्र क्षयोपशमसे और अंगोपांग नामक नाम कर्मके बलसे जिससमय आत्मा शुक्ल आदि रूपका जल्दी ग्रहण करता है उसमय उसके क्षिप पदार्थका अवग्रह होता है और उक्त कारणोंकी मंदतासे जिससमय देरीसे पदार्थका ग्रहण करता है उससमय उसके चिर है अवग्रह होता है। . चक्षु इंद्रियावरण और वीयांतराय कर्मकै तीव्र क्षयोपशमसे एवं अंगोपांग नामक नामकर्मके बलसे जिससमय आत्मा पंचरंगे किसी वस्र कंवल वा चित्रके एकवार किसी अवयवमें पांचो रंगोंको देखता है उससमय यद्यपि शेष अवयवोंका पंचरंगापन उसे दीखता नहीं और न निकला हुआ उसके सामने ही रक्खा है तो भी उस अवयवके पांचो रंगोंको देखकर उस समस्त अवयवोंके पंचरंगेपनको ग्रहण कर URBAREGASRHABRETOURASISASTER Rews
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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